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आखिर नेताजी की अस्थियों का डीएनए टेस्ट क्यों नहीं होता

त्ना श्रीवास्तव

वर्ष 2016 में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु ने कहा, भारत सरकार अपने पास मौजूद करीब सभी फाइलों को गैर वर्गीकृत कर जारी कर चुकी है, जो फाइलें भारत सरकार ने अब तक जारी की हैं, वो सभी राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद हैं। हालांकि उनमें कोई ऐसी सूचना नहीं है, जो ये बताती हो कि सुभाष के निधन को लेकर 18 अगस्त 1945 के बाद कोई रहस्य पैदा हुआ हो या इस बारे में नई जानकारी मिली हो।

जब 05 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक किया तो उससे पहले वाकई देश में सनसनी और कौतुहल की स्थिति थी, हर किसी को लग रहा था कि इन फाइलों में जरूर कुछ ऐसा होगा, जिससे सुभाष को लेकर कोई नई बात सामने आएगी, जो बताएगी कि वाकई 18 अगस्त 1945 के बाद उनका हुआ क्या था, वो क्या जीवित थे, वो उसके बाद कहां थे, क्या कभी उन्होंने नेहरू सरकार को कोई पत्र लिखा था। बहुत से सवाल थे लेकिन फाइलों में जो सामने आया, वो यही था कि हवाई हादसे के बाद उनके कहीं जिंदा होने का कोई प्रमाण नहीं है। ऐसे में अब एकमात्र रास्ता यही है कि नेताजी की अस्थियों की डीएनए जांच कराई जाए, जिससे उनके बारे लंबे समय से जारी तमाम अटकलों को विराम लगे। हालांकि अब तक ऐसा क्यों नहीं किया गया, ये भी सवाल खड़े करता है। ये वो कड़ी है जो नेताजी के निधन संबंधी सारे रहस्यों के लिए दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी। जिस ओर अब मोदी सरकार को निर्णायक कदम उठाना चाहिए।

सुभाष चंद्र बोस के निधन की जांच के लिए आयोग

सुभाष चंद्र बोस के निधन से जुड़े रहस्य की जांच के लिए तीन आयोग बने। दो आयोगों यानि शाहनवाज खान और जस्टिस जीडी खोसला आयोग ने कहा कि नेताजी का निधन तायहोकु में हवाई हादसे में हो गया। लेकिन 90 के दशक के आखिर में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा गठित जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी आयोग ने कहा, उनका निधन हवाई हादसे में नहीं हुआ था। 50 के दशक में बने पहले जांच आयोग के सदस्य रहे सुभाष के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने बाद में खुद को आयोग की जांच रिपोर्ट से अलग कर अपनी असहमति रिपोर्ट तैयार की, जिसे उन्होंने अक्टूबर 1956 में जारी किया। इस रिपोर्ट में उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि सुभाष किसी हवाई हादसे के शिकार नहीं हुए बल्कि जिंदा बच गए.। जापान के उच्च सैन्यअधिकारियों ने खुद उन्हें सुरक्षित जापान से निकालकर सोवियत संघ की सीमा तक पहुंचना सुनिश्चित किया। लेखक संजय श्रीवास्तव की किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा में तथ्यों और दस्तावेजों के आधार पर सही पहलुओं को गहन रिसर्च के साथ सामने रखा गया है।

नेताजी को लेकर विभिन्न देशों की रिपोर्ट्स

नेताजी को लेकर अलग अलग देशों की जासूसी एजेंसियों ने भी अपनी रिपोर्ट्स तैयार की थीं। उन सबका भी नेताजी को लेकर अलग अलग मत और निष्कर्ष थे। फ्रांस, चीन, अमेरिका की खुफिया एजेंसियों ने अपनी रिपोर्ट्स दी थीं। जो अब भी उनके अर्काइव्स में मौजूद हैं। कुछ रिपोर्ट्स बाहर आईं, कुछ नहीं आईं। ऐसा काम तो निश्चित तौर पर सोवियत संघ ने भी किया होगा। उन दिनों सोवियत संघ की दिलचस्पी ना केवल भारत में बढ़ने लगी थी बल्कि सुभाष ने लिखित तौर पर उनसे राजनयिक संपर्क करने की तब कोशिश की थी जब वो जापान में थे और ये लगने लगा था कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार तय है। तभी से वो सोवियत संघ जाना चाह रहे थे। लगातार टोक्यो के सोवियत दूतावास के माध्यम से उनकी सरकार के संपर्क में रहने की कोशिश कर रहे थे। बस यही बात हैरान करती है कि आखिर ऐसा क्यों है। क्या सोवियत संघ को वाकई उनके बारे में कुछ नहीं मालूम था या फिर उनके पूरे रिकॉर्ड ही नष्ट कर दिए गए।

टोक्यो स्थित रैंकोजी मंदिर में रखी नेताजी की अस्थियां

लेखक संजय श्रीवास्तव की सुभाष चंद्र बोस पर चर्चित किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा कहती है, शायद सुभाष के बारे में जानने के लिए सबसे बड़ा प्रमाण टोक्यो के पास बना वो रैंकोजी मंदिर ही है, जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां 18 सितंबर 1945 से रखी हैं। ये अस्थियां वहां नेताजी के अंतिम संस्कार के लिए ले जाई गईं थीं। वहां नेताजी के अंतिम संस्कार की रस्म तो निभाई गई तो अस्थियां संजोकर रख ली गईं।

रैंकोजी टोक्यो के बाहर बना पुराना छोटा सा मंदिर है, ये 1594 का बना हुआ है। जब अस्थियां इस मंदिर में रखी गईं तब यहां के पुजारी मोचिजुकी थे। अब उनके बेटे वहां के पुजारी हैं। असल में इस मंदिर में रखी अस्थियां अब सुभाष चंद्र बोस के गुमशुदगी या निधन के जुड़े सारे रहस्य की अंतिम कड़ी है। यानि रखी अस्थियां हमें साफ साफ बता सकती हैं कि ये सुभाष बोस की हैं या नहीं। सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता बोस फाफ लंबे समय से अस्थियां के डीएनए जांच की मांग करती रही हैं।

नेताजी के परिवार का क्या कहना और मानना है

बोस की बेटी अनिता बोस ने यही माना कि उनके पिता की मौत 18 अगस्त 1945 को उसी हादसे में हुई थी। उन्होंने यही मांग की कि टोक्यो के रैंकोजी मंदिर में रखी बोस की अस्थियों का डीएनए टेस्ट कराया जाना चाहिए ताकि उन्हें लेकर जो रहस्य बरकरार हैं, वो हमेशा के लिए खत्म हो जाए। पिछले कुछ सालों से वो लगातार ये मांग कर रही हैं। अनीता अब 78 साल की हो चुकी हैं। नेताजी की पत्नी एमिली शेंकल का 1996 में 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। अनीता जर्मनी में रहती हैं। वो वहां की जानी मानी अर्थशास्त्री के तौर पर जानी जाती हैं। वो जर्मनी की आगसबर्ग यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर भी रहीं। इसके अलावा उन्होंने वहां सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जर्मनी की ओर से राजनीति में कदम रखा। वो जर्मनी में एक कस्बे की मेयर भी चुनी गईं।

अनीता ने पिछले कुछ सालों में यही कहा है कि उनके पिता की मृत्यु हवाई हादसे में हुई थी। इसको मानने के लिए वो इस पूरे मामले की तह में गईं। कुछ उन लोगों से बात की, जो इस हादसे के प्रत्यक्षदर्शी थे। अनीता भारत सरकार से यही मांग कर रही हैं कि नेताजी की अस्थियों को भारत लाया जाए। दो बातें उनके पिता की आत्मा को शांति देंगी। अनीता चाहती हैं कि टोक्यो में नेताजी की जो अस्थियां मंदिर में रखी हैं, उनका डीएनए टेस्ट कराया जाए, ताकि सच्चाई सामने आए और नेताजी की आत्मा को शांति प्रदान की जा सके। अनीता का कहना है, मेरे पिता हिंदू थे। वो हिंदू धर्म मानते थे। हिंदू धर्म कहता है कि अस्थियां जब तक गंगा में प्रवाहित नहीं की जातीं तब तक आत्मा को शांति नहीं मिलती, लिहाजा अब उनके पिता की आत्मा को शांति के लिए ये किया जाना चाहिए। हालांकि नेताजी के निधन की जांच करने के लिए बने तीसरे मुखर्जी जांच आयोग ने अपने निष्कर्ष में साफ कहा था कि रैंकोजी मंदिर में रखी अस्थियां सुभाष चंद्र बोस की नहीं हैं।

इन अस्थियों को कई बार भारत में लाने की मांग होती रही हैं। लेकिन वैधानिक दिक्कत ये भी है कि भारत सरकार ने अब तक आधिकारिक तौर पर नेताजी सुभाष को मृत नहीं माना है। हालांकि वर्ष 2015 में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित जिन फाइलों को जारी किया, उन्हीं फाइलों में एक फाइल में कहा गया है कि भारत सरकार रैंकोजी मंदिर से नेताजी की अस्थियां इसलिए नहीं लाना चाहती, क्योंकि इससे नेताजी के परिवार में उल्टी प्रतिक्रिया हो सकती है। हो सकता है कि जनता का एक वर्ग भी इसे सही तरीके से नहीं ले। लेकिन मौजूदा हालात कहते हैं कि अब जनता भी रैंकोजी मंदिर में रखी अस्थियों की डीएनए जांच का स्वागत करेगी।

इस जांच से कुछ बातें हमेशा हमेशा के लिए साफ हो जाएंगी

  • अगर ये सुभाष बोस की हैं तो मतलब साफ है कि वो हवाई हादसे में दिवंगत हो गए थे। ऐसे में इन अस्थियों को ससम्मान भारत लाकर उसे यहां स्थापित करना चाहिए और एक यादगार स्मारक बनाना चाहिए।
  • अगर डीएनए जांच ये बताती है कि ये अस्थियां नेताजी की नहीं हैं तो फिर लंबे समय से जारी ये बातें सत्य साबित होंगी कि जापानियों ने हवाई हादसे की बात करके केवल सुभाष को वहां से निकाला था। ऐसे में फिर सुभाष के पूरे प्रकरण पर नए सिरे से जांच की जरूरत होगी।

सुभाष की अस्थियों की जांच करने में शायद ही कोई बाधा हो, सरकार ने जिस तरह उनकी तमाम फाइलों को सार्वजनिक किया, उसी तरह उसे अब ये काम भी करना चाहिए। इससे नेताजी के परिवार को भी शायद कोई एतराज हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार जापान गए। पहली बार वो 2014 में वहां गए और दूसरी बार 2016 में। दोनों ही बार वो टोक्यों के रैंकोजी मंदिर में सुभाष बोस की अस्थियों के दर्शन करने नहीं गए, इससे पहले जवाहरलाल नेहरू से लेकर अटलबिहारी वाजपेयी तक जितने भी प्रधानमंत्री जापान गए, उन सभी ने रैंकोजी मंदिर में जाकर सुभाष को श्रृद्धासुमन अर्पित किए। मोदी के वहां नहीं जाने का आमतौर पर ये मतलब निकाला गया कि वो इस दावे के पक्ष में हैं कि ये अस्थियां नेताजी की नहीं बल्कि एक जापानी सैनिक ओचिरा की हैं। अगर रैंकोजी मंदिर में रखीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों की जांच कराई जाए तो देश उसका स्वागत ही करेगा। अब जबकि देश वर्ष 2021 को सुभाष के 125वें जन्मशती वर्ष के तौर पर मनाने जा रहा है तो ऐसे में देश उम्मीद कर रहा है कि नेताजी को लेकर कोई अच्छी खबर इस साल जरूर मिले।

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