
रोजाना एक कविता : सूखी नदी का दुख

जलकांक्षिणी
यह नदी की दुखरेखा
अभी भी सागरप्रिया.
सब बह गया कल
जो भी बना था जल
नदी की देह में.
रेत की ही साक्षियां
अब तप रही हैं
सूर्य
एकांत में.
नदी वाग्दत्ता है सिन्धु की.
पहुंचना ही है- इसे
कल
इसी का तो दुख है
नदी का दुख-
जल नहीं
यात्रा है.
शतमुखी हो
कल जन्म लेगा जो
जो तप रहा है
गर्भ में.
जन्म लो ओ नदी के पुत्र!
जन्म लो.

हिन्दी के यशस्वी कवि और लेखक नरेश मेहता उन शीर्षस्थ लेखकों में हैं जो भारतीयता की अपनी गहरी दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। नरेश मेहता ने आधुनिक कविता को नया आयाम दिया। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।