रोजाना एक कविता: आज पढ़िए मशहूर कवि डेरेक वॉल्कॉट की कविता जिसका अनुवाद किया है असद ज़ैदी ने

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वह वक़्त भी आएगा
जब तुम, बख़ुशी
अपनी दहलीज़ पर ख़ुद ही को
सलाम करोगे, अपने ही आईने में
एक दूसरे के रू-ब-रू स्वागत में मुस्कुराते हुए,
और कहोगे कि आओ, यहाँ बैठो। कुछ खाओ।

तुम उस अजनबी से फिर प्यार करने लगोगे जो तुम आप ही थे।
उसे पेश करोगे मय का प्याला और निवाला। अपने दिल को वापस कर दोगे
अपना दिल, हाँ उसी अजनबी को जिसने तुम्हें प्यार किया
ज़िन्दगी भर, जिससे तुमने बेरुख़ बरती
किसी और के लिए, पर जो तुम्हें दिल से जानता है।

अपनी अल्मारी से हटा दोगे वे सारे प्रेमपत्र,
तस्वीरें, बेताबी भरे पुरज़े,
अपने आईने से उतारोगे अपनी छवि।
बैठो। अपनी ज़िन्दगी की दावत में शरीक हो।