चाहता हूंहोली खेलने से पहलेनहाकर, सारा मैल धोकरस्वयं को चमका लूं
कि हर रंगबहुत गहरे उतरेऔर मन में अंकित कर देजीवन का इन्द्रधनुषी पहलू।
चाहता हूंहोली...
खुसरो की ही मज़ार के बाहरबैठी हैं विस्थापन-बस्ती की कुछ औरतें सटकर!भीतर प्रवेश नहीं जिनका किसी भी निज़ाम में—एका ही होता है उनका जिरह-बख़्तर।हयात-ए-तय्याब,...
स्वप्न से किसने जगाया? मैं सुरभि हूं। छोड़ कोमल फूल का घर, ढूंढती हूं निर्झर। पूछती हूं नभ धरा से- क्या नहीं ऋतुराज आया? मैं ऋतुओं में न्यारा वसंतमैं अग-जग...