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रोजाना एक कविता : रूसी कवि वेलेमीर ख़्लेब्निकफ़ की कुछ चुनिंदा कविताएं

कविता स्वाभाविक भाव है। आता है खुद ब खुद मन के भीतर। रूसी कवि व्लदीमिर मयाकोव्स्की की कविता भी कुछ ऐसी ही होती है। उन्हें पढ़ते समय लगता है जैसे ये भाव हमारे हैं। व्लदीमिर मयकोव्स्की (1893-1930) बीसवी शताब्दी के विश्व के महानतम कवियों में से एक हैं। आज रूसी कविता में भविष्यवादी आन्दोलन के जनक व्लदीमिर मयाकोव्स्की का जन्मदिन है। आज इंडिया ग्राउंड रिपोर्ट की ‘रोजाना एक कविता’ श्रृंखला में पेश है व्लदीमिर मयाकोव्स्की की चुनिंदा कविताएं।

कुछ नहीं चाहिए!


कुछ नहीं चाहिए!
बस, टुकड़ा-भर रोटी
बूँद-भर दूध
यह आकाश

जब मरते हैं 

जब घोड़े मरते हैं वे हाँफने लगते हैं
जब घोड़े मरते हैं वे हाँफने लगते हैं,
जब घास मरती है वह सूख जाती है?
जब सूर्य मरते हैं वे बुझ जाते हैं,
जब मनुष्‍य मरते हैं – वे गीत गाते हैं।

मनुष्य जब करते हैं प्यार

मनुष्‍य जब प्‍यार करते हैं
वे अपनी आँखें फैलाते हैं
और आहें भरते हैं।
जानवर जब प्‍यार करते हैं
उड़ेल देते हैं उदासी आँखों में
और झाग से बनाते हैं लगाम का दहाना।
सूर्य जब प्‍यार करते हैं
ढक देते हैं रातों को पृथ्‍वी से बने वस्‍त्र से
और जाते हैं मित्रों के पास नृत्‍य करते हुए।
देवता जब प्‍यार करते हैं
कीलित कर देते हैं ब्रह्मांड के कंपन को
जैसे पूश्किन ने किया था वोल्‍कीन्‍स्‍कल की नौकरानी की प्रेमाग्नि को।

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