तथागत गौतम बुद्ध के प्रधान सेवक शिष्य आनंद कहीं चले जा रहे थे। गर्मियों के दिन थे। उन्हें जोर से प्यास लगी। देखा, एक कुएं से कोई कन्या पानी निकाल रही है। आनंद आगे बढ़ गए और पीने के लिए पानी मांगा। पानी निकालने वाली मातंग कन्या एक भीलनी थी। सकुचाकर बोली, ‘मैं अछूत हूं, मेरे हाथ का पानी पिओगे?”
‘मैंने पानी मांगा है, जाति नहीं मांगी।’
आनंद का उत्तर मातंग कन्या के हृदय को छू गया। उसने आनंद को पानी दिया। फिर वह आनंद के पीछे चल पड़ी। आनंद का अनुसरण करती हुई वह तथागत के पास पहुंची। तथागत ने उसे अपनी अमृतवाणी से शांति और ज्ञान का दान दिया।