
विद्या दुबे
उत्पल दत्त, एक ऐसी शख्सियत जिनका नाम लेने मात्र से लोगों के होठों पर हंसी आ जाती है। वैसे तो उत्पल दा बड़े ही गंभीर स्वभाव के थे परन्तु वे गंभीर होकर भी लोगों को इतना हंसा गए कि उनके द्वारा बोले गए शब्द “अच्छाआ…” आज भी हास्य कलाकारों के मुख पर अनायास ही आ जाता है। अपने इसी हुनर के कारण उन्हें उनकी फिल्म गोलमाल के लिए उस वर्ष ‘बेस्ट कमेडियन’ का फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड भी मिला।
जन्म हुआ अविभाजित भारत में
29 मार्च, 1929 बरिसल, बांग्लादेश में जन्में उत्पल दत्त ने अपने करियर की शुरुआत अंग्रेजी रंगमंच से की। वे स्कूल के जमाने से ड्रामा ग्रुप बनाकर अंग्रेजी नाटक करते थे। उनका विवाह वर्ष 1960 में थिएटर और फ़िल्म एक्ट्रेस शोभा सेन से हुआ, उनकी एक मात्र संतान डॉक्टर बिष्णुप्रिया हैं। उनके चेहरे को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वे इतने मंझे हुए हास्य कलाकार हैं। हिन्दी के रूपहले पर्दे पर एक पिता, चाचा, अच्छे, बुरे, कहीं डॉक्टर तो कहीं सेठ, चाहे जो भी रोल हो ‘उत्पल दा’ ने उसे बड़ी ही संजीदगी से निभाया।
गंभीर स्वभाव होने के बावजूद हास्य अभिनेता
गंभीर स्वभाव होने के बावजूद उत्पल दत्त को अधिकतर एक हास्य अभिनेता के रूप में याद किया जाता है। एक अभिनेता के रूप में उत्पल दत्त ने लगभग हर किरदार को निभाया। उनकी सुपरहिट फ़िल्म ‘गोलमाल’ में ‘भवानी शंकर’ का शानदार हास्य अभिनय आज भी लोगों के मस्तिष्क में अपनी जगह बरक़रार किये हुए है। वह एक अभिनेता ही नहीं वरन एक कुशल निर्देशक और नाटककार भी थे। उत्पल दत्त ने कई सीरियल्स में भी काम किया है।

छोटी उम्र से ही अभिनय का शौक
उत्पल दा ने 18 साल की उम्र में स्टेज के परफार्मन्स से अंग्रेजी रंगमंच के श्रेष्ठ कलाकार जेफरी केन्डाल को इतना प्रभावित किया कि 1947 से 1953 तक केन्डाल परिवार भारत में जहां भी अपने नाटक का कार्यक्रम करते उत्पल दत्त उनके साथ रहते ही। मशहूर अभिनेता शशि कपूर की पत्नी इसी केन्डाल परिवार की बेटी थीं। उत्पल दा की जीतनी अंग्रेजी पर पकड़ थी उतनी ही बंगाली भाषा पर भी थी, उन्होंने बंगाली भाषा में कई अच्छे -अच्छे नाटक दिए। उनके द्वारा अभिनीत फिल्म ‘भुवन शोम’ जो वर्ष 1970 में आयी थी उनके लिए श्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी साथ लायी थी।
साम्यवाद का प्रभाव
उत्पल दत्त साम्यवादी भावना से काफी प्रभावित थे, जिसकी झलक उनके नाटक कल्लोल में सहज ही दिखाई पड़ती है, जिस कारण 1965 में पश्चिम बंगाल की कांग्रेस सरकार ने नाराज होकर उत्पल दत्त को सात महीने के लिए जेल में डाल दिया। नाटककार और दिग्गज अभिनेता उत्पल दत्त को प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था। दत्त ने अगले सात महीने जेल में बिताए। उन्हें उनके विवादास्पद नाटक तीर (तीर) के लिए दूसरी बार गिरफ्तार किया गया था, जो लोकतंत्र की सीमाओं और समझौतों से संबंधित था।
जेल के अपने इक्सपेरियन्स को याद करते हुए उत्पल दत्त कहते हैं कि मैं कोई हीरो नहीं हूं, मुझे अपने जेल के हर मिनट से नफरत है। लेकिन सात महीने जल्दी बीत गए, आकर्षक अपराधी थे – हत्यारे, डाकू और पूरी तरह से निर्दोष पुरुषों को सामंती प्रभुओं को धोखा देकर जेल भेज दिया गया। जेल में सजा काट रहे लगभग 98% कैदियों को ‘संपत्ति’ के खिलाफ तथाकथित अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। निजी संपत्ति को बनाए रखने के लिए निरंतर युद्ध में कैदी वर्ग संघर्ष में एक हथियार है। अपराधियों को सुधारने और फिर से शिक्षित करने की सारी बातें बकवास है।

- उत्पल दत्त, टुवर्ड्स ए रिवोल्यूशनरी थिएटर (सीगल, 2009 पी 52)
उत्पल दत्त को मिले पुरस्कार
1970 – भुवन शोम, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार – जीता
1975 – अमानुष – माहिम घोषाल, फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार – नामांकित
1980 – गोलमाल – भवानी शंकर
1982 – नरम गरम – भवानी शंकर
1986 – साहब – बद्री प्रसाद शर्मा
1987 – रंग बिरंगी – पुलिस इंस्पेक्टर धुरंधर भटवाडेकर,
बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड: सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार – जीता
1990 – संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप के लिए जीवन भर योगदान रंगमंच सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – जीता
1993 अगांतुक – मनमोहन मित्रा। इसके अलावा श्रेष्ठ अभिनेता के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया ।
न केवल एक कामयाब एक्टर, बल्कि एक कामयाब निर्देशक भी थे
उन दिनों रिलीज़ होने वाली फिल्मों में उत्पल दा की फ़िल्में अक्सर बॉक्स ऑफिस पर हीट होने वाली फ़िल्मों का हिस्सा हुआ करती थी। उनकी फ़िल्मों में ‘जुली’, ‘ग्रेट गेम्बलर’, ‘कोतवाल साहब’, ‘बात बन जाये’, ‘दो अन्जाने’, ‘इन्किलाब’, ‘शक’, ‘अनाडी’, ‘किसी से न कहना’, ‘अमानुष’, ‘दुल्हन वोही जो पिया मन भाये’, ‘इमान धरम’, ‘अपने पराये’, ‘अंगूर’, ‘आनंद आश्रम’, ‘अनुरोध’, ‘प्रियतमा’, ‘अग्नि परीक्षा’, ‘स्वामी’, ‘येही है ज़िन्दगी’, ‘संतान’, ‘सदा सुहागन’, ‘मैं बलवान’, ‘साहेब’, ‘लाखों की बात’, ‘जहोन जानी जनार्दन’, ‘अच्छा बुरा’, ‘बहुरानी’, ‘जवानी ज़िन्दाबाद’, ‘कर्तव्य’, ‘राम बलराम’, ‘बरसात की एक रात’, ‘हमारी बहु अलका’, ‘महावीरा’, ‘प्रेम विवाह’, इत्यादि। उत्पल दत्त ने न सिर्फ कॉमेडी रोल में अपने आप को साबित किया, बल्कि खलनायिकी में भी उतनी ही सहजता से श्रेष्ठता हासिल की थी। भले ही उत्पल दत्त ने कम फिल्में की हों, लेकिन हर फिल्म में उन्होंने अपने अभिनय की एक अलग छाप छोड़ी हैं, जिसे भूल पाना नामुमकिन है।

‘जात्रा’ उनके द्वारा किया हुआ बंगाल का एक विशिष्ट नाट्य था, जिसे उनके निधन के बाद ‘उत्पल दत्त नाट्योत्सव’ के रूप में मनाया जाता था। वर्ष 1993 में 19 अगस्त को दिल का दौरा पड़ने से दत्त का निधन हो गया।
अभी हाल ही में रिलीज़ हुयी विद्या बालन की फ़िल्म ‘घनचक्कर’ के बैंक राबरी सीन में इमरान हाशमी अपने चेहरे पर उत्पल दा के चेहरे का नकाब लगाकर घुमते हैं और जब- जब उत्पल दा का चेहरा पर्दे पर दिखता है, तब- तब दर्शक हंसते हैं, ऐसे सहज स्वाभाविक कलाकार का, 1993 में सिर्फ 64 साल की आयु में देहांत हो गया। मगर अपनी अनेक भूमिकाओं के जरिये उत्पल दा आज भी हम सब के बीच जिन्दा हैं और न जाने कितने पीढ़ियों तक जिन्दा रहेंगे। आज भले ही उत्पल दा हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी फिल्में हमेशा उनकी और उनके अभिनय की संजीदगी को हमारे दिलों में जिन्दा बनाये हुए हैं।