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World Photography day : हर तस्वीर एक मुकम्मल कहानी है

फोटो : वी. चंद्रशेखर

मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने कागज
साथ तेरे मेरी तस्वीर निकल आई है

यह सत्य है कि हर तस्वीर एक मुकम्मल कहानी होती है, लेकिन उस कहानी को जानने के लिए प्यार भरी नजर और भावुक मन का होना जरूरी है। विश्व फोटोग्राफी दिवस पर मन में यह ख्याल आ रहा है कि जब पहली बार किसी ने अपनी फोटो खिंचवाई होगी तो उसके मन में कितना उत्साह भरा रहा होगा। बाद में वही तस्वीर उसके लिए एक यादगार से कम तो नहीं रही होगी। हां, हर तस्वीर जैसे एक कहानी है, वैसे ही हर तस्वीर इतिहास का एक पन्ना भी है। साबिर दत्त का एक शेर है—

इस शेर में उस याद की ही बात है। प्रेम और उत्साह से साथ होने की ही बात है। तस्वीर उस पुराने सुनहरे पल की याद होती है। ऐसी याद को खत्म करने के लिए या तो प्रेमी—प्रेमिका तस्वीर के दो टुकड़े कर देते हैं या उसे तमाम उम्र के लिए किसी बक्से में छुपा देते हैं। कई प्रेमी तो तस्वीर को दिल में बसा लेते हैं।

तस्वीर का महत्व इस डिजीटल युग में बहुत बढ़ गया है। सोशल मीडिया ने इसे पंख दे दिए हैं। दर्द भरी तस्वीर हो …शोषण—अत्याचार की तस्वीर हो …आंदोलनों की तस्वीर हो या दंगों की तस्वीर हो, सबका व्यापक प्रभाव समाज पर पड़ता है। कोर्ट में फैसले के लिए यही तस्वीर गवाही देती है। समाज में नेता की छवि भी इसी से बनती और बिगड़ती है। किसी दंगाई के साथ या रेपिस्ट बाबा के साथ किसी बड़े नेता की छवि जगहंसाई का कारण बन जाती है, तो दूसरी ओर किसी बड़े वैज्ञानिक या लेखक के साथ किसी नेता की छवि उसे लोकप्रिय बना देती है।

गांधी और नेहरू की कई तस्वीरें उस समय के इतिहास को दर्ज कराती हैं। भगत सिंह और बाबासाहेब आंबेडकर की तस्वीरें उस दौर के उनके जन आंदोलनों का पूरी व्याख्या प्रस्तुत कर देती हैं। मदर टेरेसा की गरीबों की सेवा करने की तस्वीर हो या दिलीप कुमार की क्रिकेट खेलती तस्वीर हो सबकी अपनी एक कहानी है, जो इन दिनों सोशल मीडिया पर दौड़ती रहती है।

मदर टेरेसा की उन तस्वीरों को याद कीजिए जिनमें वे अनाथ बच्चों को स्नेह में गले लगाए हुईं हैं। ये तस्वीरें बिना शब्दों के ही तमाम बातें कह देतीं हैं। इसके अलावा उनकी वे तस्वीरें भी ऐतिहासिक दर्जा रखती हैं, जिनमें वे कुष्ठ रोगियों की सेवा और इलाज अपने हाथों से कर रही हैं। पूछने वाले तो इन्हीं तस्वीरों को दिखा कर झूठे स्वयंसेवी संगठनों से पूछते हैं कि तुमने अगर लोगों की सेवा की है, तो मदर टेरेसा की तरह एक तस्वीर ही दिखा दो।

साउथ अफ्रीकन फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर की एक तस्वीर तो सूडान की बदहाली को पूरी दुनिया के सामने लाने का काम किया था। ‘गिद्ध और छोटी लड़की’ नामक उस तस्वीर ने पूरी दुनिया के लोगों को झकझोर कर रख दिया था। 1993 में जब सूडान में अकाल पड़ा था तब केविन ने इस तस्वीर को खींचा था। इस तस्वीर में भूख से बेहाल एक बच्ची के पीछे एक गिद्ध पड़ा था, जो उस मर रही बच्ची को खाने के लिए आतुर था। इस तस्वीर के लिए केविन को सम्मानित भी किया गया लेकिन केविन तो उस तस्वीर के खींचने के बाद ही काफी विचलित सा हो गया और 33 वर्ष की उम्र में उसने आत्महत्या कर ली।

केविन की तरह ही दुनिया के कई फोटोग्राफरों ने उस समय को इतिहास में दर्ज किया। चाहे हिटलर की क्रूर तानाशाही से पैदा हुआ नरसंहार हो या भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का जुल्म हो, सबकी तस्वीर ही है जो नई पीढ़ी को बताती है कि कौन कैसा था। जनरल डायर ने जब जलियावालां बाग नरसंहार किया तो उसकी तस्वीर भी है। गुजरात में नरसंहार हुआ उसकी भी तस्वीरें हैं। यह सच है कि तस्वीरें झूठ नहीं बोलती, इसलिए तस्वीरों में जो कैद हो गया वह अपनी चालाकी और जुल्म छुपा नहीं सकता।

हर साल 19 अगस्त को दुनिया भर में मनाया जाने वाला फोटोग्राफी दिवस यह संदेश लेकर आता है कि हर तस्वीर की एक मुकम्मल कहानी होनी चाहिए और उसका उपयोग सच सामने लाने के लिए होना चाहिए। इसलिए बहादुरशाह जफर कहकर गए हैं—

चाहिए उसका तसव्वुर ही से नक्शा खींचना
देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या

गुलजार हुसैन

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