
गर्मियों से मुग्ध थी धरती
पर बारिश की बूंदें पड़ते ही
तुम बुदबुदाईं
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
क्या तुम्हारा मन
मिट्टी से भी ज़्यादा
ठण्ड को महसूस करता है
तभी तो बारिश में विलीन हो गए
छलकते हुए आनन्द को स्वीकार न कर
तुमने आहिस्ता से कहा
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
तुम्हारे आंगन में
बूंद-बूंद में
अपने अनगिनत चान्दी के तारों में
संगीत की सृष्टि कर
बारिश
जिप्सी लड़की की तरह नाचती है
तुम्हारी आंखों में ख़ुशी है, आह्लाद है
और शब्दों में बच्चों-सी पवित्रता
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
अपने इर्द-गिर्द की चीज़ों
से अनजान
तुम यहां बैठी हो
नदी तुम्हारी स्मृतियों में ज़िन्दा है
अपनी सहेलियों के संग
धीरे से घाघरा उठाकर
तुम नदी पार करती हो
अचानक बारिश गिरती है
लहरें चान्दी के नुपूर पहन नाचती हैं
बारिश में भीगकर हर्षोन्माद में
हंसते हुए तुम
नदी तट पर पहुंचती हो
बारिश में भीगे आंवले के फूल
पगडण्डी पर तुम्हारा स्वागत करते हैं
तुम्हारे सामने
केवल बारिश है, पगडण्डी है
और फूलों से भरे खेत हैं !
मेरी उपस्थिति को भूलते हुए
तुमने मृदुल आवाज़ में कहा
बारिश कितनी ख़ूबसूरत है !
फिर तुम्हें देखकर
मैंने उससे भी मृदुल आवाज़ में कहा
तुम भी तो कितनी ख़ूबसूरत हो !
ओएनवी कुरूप
कवि और अनुवादक। प्रमुख कृतियां: मरुभूमि, अक्षरम, मृगया।