Prayagraj : मथुरा-वृंदावन बांके बिहारी मंदिर कारिडोर मामला

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हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से कहा, अपने पैसों से बनाए कारिडोर, मंदिर के पैसे न छुए सरकार

पूजा अनुष्ठान सेवायतों पर छोड़ें : कोर्ट

प्रयागराज : मथुरा के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में मंगलवार को सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूजा अनुष्ठान और मंदिर प्रबंधन में सरकारी हस्तक्षेप करने से फिलहाल मना कर दिया है। साथ ही मंदिर में चढ़ावें के पैसों को भी नहीं छूने को कहा है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि पूजा अनुष्ठान को मंदिर के सेवायतों पर ही छोड़ दिया जाए।

यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अनंत शर्मा व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने यूपी सरकार और गोस्वामी सेवायतों से पूछा कि क्या मंदिर क्षेत्र के पुनर्विकास की प्रस्तावित योजना के संबंध में कोई आपसी चर्चा हुई थी। कहा गया कि गोस्वामी पुजारियों की ओर से प्रस्तावित गलियारे के विभिन्न पहलुओं पर आपत्ति जताते रहे हैं। जिसमें कुंज गलियों को हटाना भी शामिल हैं। इसके अलावा स्थानीय प्रशासन की भागीदारी पर भी सवाल खड़े किए गए हैं।

मंदिर के सेवायतों द्वारा यह भी कहा गया कि प्रशासन मंदिर प्रबंधन को अपने कब्जे में लेना चाह रही है। जबकि, यह उचित नहीं है। यूपी सरकार को मंदिर में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार केवल गोस्वामी सेवायतों का है। महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने कहा कि सरकार केवल एक गलियारा बना रही है और मंदिर के सुरक्षा मामलों का प्रबंधन कर रही है। मंदिर के अंदर के मामले में आपसी सहमति बनानी है। उन्होंने हलफनामा दाखिल करने के लिए समय की मांग की। इसके बाद मुख्य न्यायमूर्ति ने यह आदेश पारित किया और मामले की सुनवाई के लिए पांच अक्टूबर की तिथि तय कर दी।

सरकार का कहना है कि बांके बिहारी मंदिर में दर्शन के लिए दर्शनार्थियों की सुविधा को देखते हुए सरकार ने एक कॉरिडोर बनाने का निर्णय लिया है। कहा गया कि सरकार चाह रही है कि उसके इस काम में मंदिर का प्रबंध तंत्र भी आगे आए और उसका विरोध न करें। जबकि मंदिर के गोस्वामियों का कहना है कि वे कॉरिडोर का विरोध नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है की सरकार कॉरिडोर के नाम पर मंदिर में हस्तक्षेप करना चाह रही है जो सर्वथा अनुचित है तथा लोअर कोर्ट द्वारा पारित डिग्री के खिलाफ है। मंदिर की तरफ से यह भी कहा जा रहा है कि भगवान बांके बिहारी बाल स्वरूप में है इस कारण उनके दर्शन का समय निर्धारित है। इस समय में फेरबदल कर और समय बढ़ाने की सरकार की मंशा ठीक नहीं है। हाईकोर्ट पुनः इस मामले की 5 अक्टूबर को सुनवाई करेगी।