
नयी दिल्ली:(New Delhi) बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्यतेल, तिलहन कीमतों (edible oil oilseeds prices) में चौतरफा गिरावट का रुख रहा और सभी खाद्यतेल तिलहनों के दाम हानि के साथ बंद हुए। देश के तेल तिलहन कारोबार, सस्ते आयातित खाद्यतेलों की गिरफ्त में है जिसकी वजह से मौजूदा समय में सरसों तेल तिलहन जैसे अन्य देशी तेल बाजार में खप नहीं रहे हैं। आम गिरावट के रुख के बीच सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पाम (सीपीओ) एवं पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट रही।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि दूसरी ओर, शुल्क मुक्त आयात की छूट की वजह से आयातित तेलों का भी जरुरत से कई गुना अधिक आयात होने के कारण सोयाबीन डीगम तेल कीमतों में पिछले सप्ताहांत के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताहांत में जोरदार गिरावट देखने को मिली। आयात की अधिकता के बावजूद इन तेलों के लिवाल कम हैं। जनवरी के महीने में सूरजमुखी तेल का आयात लगभग चार लाख 62 हतार टन का हुआ है जबकि प्रति माह हमारी खपत लगभग 1.5 लाख टन ही है। इसी तरह सोयाबीन तेल का आयात भी जरुरत से काफी अधिक लगभग 3.62 लाख टन का हुआ है।
सूत्रों ने कहा कि शुल्कमुक्त आयात की छूट 31 मार्च तक है और इसी वजह से आयातक भारी मात्रा में आयात कर बंदरगाहों पर स्टॉक जमा कर रहे हैं। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि पिछले दो साल की तरह सरसों के अच्छे दाम मिलने की उम्मीद रखने वाले किसानों ने सरसों की भारी पैदावार को अंजाम दिया लेकिन इस सस्ते आयातित तेलों से बाजार के पटे होने के कारण उन किसानों की सरसों बाजार में खपना मुश्किल हो गया है क्योंकि सरसों की लागत अधिक बैठती है।
सरसों की आवक मंडियों में बढ़ने लगी है और सस्ते आयातित तेलों की मौजूदगी में सरसों की लिवाली कम है और अधिकांश जगहों पर सूरजमुखी बीज की तरह सरसों तिलहन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे चले गये हैं। तीन-चार माह पहले हरियाणा में सहकारी संस्था नाफेड ने खुद सूरजमुखी बीज की बिक्री एमएसपी से नीचे भाव पर की।
सूत्रों ने कहा कि किसानों की इस बेबसी को दूर करने की कोशिश के तहत सरकार ने सरसों फसल की खरीद नाफेड जैसी सहकारी संस्थाओं के द्वारा कराने का सोचा है। सूत्रों ने कहा कि पिछले अनुभवों के आधार पर नाफेड के द्वारा ज्यादा से ज्यादा 15-20 लाख टन सरसों की खरीद होने की उम्मीद है और ऐसे में बाकी सरसों का क्या होगा? नाफेड अगर 15-20 लाख टन सरसों खरीद भी ले तो वह स्टॉक की तरह पड़ा रहेगा और सरसों की अगली बिजाई के समय इस स्टॉक का हवाला देकर सट्टेबाजी बढ़ेगी। नाफेड की जगह अगर अन्य सहकारी संस्था, हाफेड सरसों की खरीद करती तो हाफेड के पास हरियाणा में अपने दो तेल संयंत्र है जहां सरसों की पेराई कर तेल ग्राहकों को उचित दाम में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से उपलब्ध कराया जा सकता था।
सस्ते आयातित तेलों की भरमार के कारण सरसों, सोयाबीन और बिनौला तेल तिलहन बाजार में खप नहीं रहे और सरकार को त्वरित कार्रवाई कर आयातित तेलों पर आयात शुल्क अधिक से अधिक करने के बारे में सोचना होगा। जब देश में उत्पादन होने वाला लगभग 35 प्रतिशत तेल नहीं खपेगा तो देश किस तरह आत्मनिर्भर बन पायेगा? इसके लिए सरकार को तेल तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ ही साथ देशी तेल तिलहनों के बाजार विकसित करने की ओर भी गंभीरता से सोचना होगा और सारी नीतियां इसको ध्यान में रखकर बनानी होगी। केवल और केवल तभी हम सच्चे मायने में तेल तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ पायेंगे।
सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयात की मौजूदा स्थिति को काबू नहीं किया गया तो हमें मवेशियों और मुर्गीदाने के लिए खल एवं डीआयल्ड केक (डीओसी) कहां से मिलेगा? विगत दिनों में दूध के दाम में कई बार बढ़ोतरी हुई है। जब खल के दाम महंगे होंगे तो दूध के दाम तो बढ़ेंगे ही। देशी तिलहन हमें पर्याप्त मात्रा में पशुआहार और मुर्गीदाने उपलब्ध कराते हैं इसलिए खाद्यतेल कीमतों के दाम थोड़ा बढ़ते भी हैं तो इससे किसानों को ही लाभ पहुंचेगा और उनका यह धन वापस अर्थव्यवस्था में ही लौटेगा। किसानों को थोड़ा अधिक लाभ मिला तो अंतत: वह हमें तेल तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता की ओर ही ले जायेगा।
सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेलों के दाम कभी 40 रुपये टूटने के बाद पांच रुपये बढ़ जायें तो सारे मीडिया में इसे महंगाई बताया जाने लगता है पर अभी सस्ते आयातित खाद्यतेलों से किसान, तेल उद्योग संकट में हैं तो महंगाई पर बोलने वाला मीडिया और तेल विशेषज्ञ मौन हैं। उन्होंने कहा कि तेल तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता को ओर ले जाने में मीडिया की सकारात्मक भूमिका हो सकती है कि वह स्थितियों को गहराई से छानबीन कर उसके बारे में लिखे।
सूत्रों ने कहा कि एक विशेष समस्या खुदरा बिक्री कंपनियों द्वारा निर्धारित किया जाने वाला अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) भी है जिसकी वजह से मौजूदा समय में वैश्विक खाद्यतेल कीमतों में आई भारी गिरावट का लाभ उपभोक्ताओं को समुचित नहीं मिल पा रहा है। यह एमआरपी पहले से इतना अधिक रखा जाता है कि खाद्यतेल कीमतों में आई भारी गिरावट के बावजूद इसके लाभ से उपभोक्ता वंचित कर दिये जाते हैं। सूत्रों ने कहा कि किसी को भी मॉल या बड़ी दुकानों में जाकर खोज खबर लेनी चाहिये कि वैश्विक स्तर पर गिरावट आने के बावजूद ग्राहकों को किस दाम पर खाद्य तेल बेचा जाता है तो हकीकत सामने आ जायेगी।
सूत्रों के मुताबिक, पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 120 रुपये टूटकर 5,300-5,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। समीक्षाधीन सप्ताहांत में सरसों दादरी तेल 320 रुपये घटकर 10,980 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं सरसों पक्की घानी और कच्ची घानी तेल की कीमतें भी क्रमश: 30-30 रुपये घटकर क्रमश: 1,750-1,780 रुपये और 1,710-1,835 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुईं।