नई दिल्ली : (New Delhi) उच्चतम न्यायालय (The Supreme Court) ने पंजाब और हरियाणा हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा 16 साल की मुस्लिम युवती की शादी को कानूनी तौर पर वैध करार देने के फैसले को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना की (The bench headed by Justice BV Nagarathna) अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।
दरअसल, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी जिसमें उच्च न्यायालय ने 16 साल की मुस्लिम युवती की शादी को कानूनी तौर पर वैध करार दिया था। उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर शादी को वैध करार दिया था। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का कहना था कि यह फैसला बाल विवाह निषेध कानून 2006 के विपरीत है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (The Punjab and Haryana High Court) ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर इस शादी को वैध करार देते हुए एक मुस्लिम जोड़े को सुरक्षा प्रदान की थी।
दरअसल, पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल के कम उम्र की लड़की से शारीरिक संबंध बनाना अपराध है, भले ही वह लड़की सहमति से बनाया गया हो। शादी से जुड़े अधिकतर कानूनों में भी लड़की की शादी की उम्र 18 वर्ष रखी गई है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ में यौवन अवस्था (puberty) हासिल कर चुकी लड़की के विवाह को सही माना गया है।