नई दिल्ली : देशभर के रेलवे कर्माचरियों के विभिन्न संगठनों के संयुक्त मंच ने शनिवार को कहा कि वह नई पेशन योजना (एनपीएस) को समाप्त करने और पुरानी पेशन योजना (ओपीएस) की बहाली की मांग लेकर आगामी 10 अगस्त को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल रैली आयोजित करेंगे।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआईआर) महासचिव डॉ. एम. राघवैया ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए एनएफआईआर और विभिन्न महासंघों व एसोसिएशनों के संयुक्त मंच ने 10 अगस्त को नई दिल्ली (राम लीला मैदान) में एनपीएस के खिलाफ विशाल रैली आयोजित करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि देशभर से बड़ी संख्या में कर्मचारी नई दिल्ली पहुंचकर विशाल रैली में हिस्सा लेंगे। इस रैली में ज्वाइंट फोरम की ओर से एनपीएस के खिलाफ और ओपीएस की बहाली के लिए भविष्य में तीव्र संघर्ष का कार्यक्रम घोषित किये जाने की उम्मीद है।
महासचिव राघवैया ने कहा कि केंद्र सरकार ने 22 दिसंबर 2003 को केंद्रीय कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना के स्थान पर नई पेंशन योजना की शुरुआत के लिए 01/01/2004 को अधिसूचना जारी की थी। उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वैध अधिकारों के खिलाफ इस तरह के निर्णय लेने से पहले कोई परामर्श नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि एनएफआईआर एनपीएस को खत्म करने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है और केंद्र सरकार से विभिन्न स्तरों पर चर्चा भी हुई है, लेकिन आज तक कोई संतोषजनक परिणाम नहीं निकला है। 2004 से केंद्र सरकार की सेवाओं में कार्यरत लोगों को उनकी सेवानिवृत्ति पर गारंटीकृत पेंशन के रूप में कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है।
राघवैया ने कहा कि जैसा कि सरकार अड़ी हुई है, फेडरेशन ने एनपीएस के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए लगभग सभी कर्मचारी संगठनों के संयुक्त मंच के गठन की पहल की और जनवरी 2023 से पूरे भारत में आंदोलन आयोजित किए जा रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने कुछ संदर्भ शर्तों के साथ सचिव व वित्त की अध्यक्षता में पेंशन समीक्षा समिति नियुक्त की है, लेकिन हमें आशंका है कि समिति की रिपोर्ट ओपीएस की बहाली सुनिश्चित नहीं कर सकती है।
महासचिव राघवैया ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1982 में दिए अपने फैसले में कहा था कि पेंशन कर्मचारी का सम्मानपूर्वक जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है और यह कोई उपहार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे और सुरेश प्रभु ने वर्ष 2014 और 2015 में केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था कि रेलवे कर्मचारियों की भूमिका अद्वितीय, जटिल और देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले रक्षा बलों के समान है, इसलिए रेलवे को छूट दी जानी चाहिए।