राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू ने एक दिन देखा कि उनकी किताब के पन्ने फटे हुए हैं। उन्हें यह समझते देर न लगी कि यह बच्चों का काम है। राजेंद्र बाबू उनसे बातें कहलवा लेना चाहते थे, मगर वह चाहते थे कि स्वयं बच्चों पर आरोप न लगाएं। उनका मानना था कि ऐसा करने से बच्चों में अपराधी होने की भावना पैदा होती है।
उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने बच्चों को बुलाकर कहा, “जिसने जितने पन्ने फाड़े हैं, उसे उतने पैसे दिए जाएंगे। “सबने खुशी-खुशी पन्ने फाड़ने की बात बता दी। उन्हें इनाम भी दिये गये, मगर साथ ही राजेन्द्र बाबू ने उन्हें समझाया कि पन्ने फाड़ना अच्छी बात नहीं। सारी बात अब बच्चे समझ गये। उन्होंने अपनी गलती कबूल की और फिर ऐसी गलती न करने का वायदा किया।