
भगवान् श्रीकृष्ण कहीं जा रहे थे। साथ चल रहे एक व्यक्ति ने प्रश्न किया गया कि भगवन आप युधिष्ठिर को धर्मराज क्यों कहते हैं? श्री कृष्ण मुस्कुराए और बोले, मैं उन्हें इसलिए धर्मराज कहता हूं क्योंकि उन्होंने मानवता को सच्चे मायने में धारण कर रखा है। उन्होंने समझाते हुए कहा जब महाभारत का युद्ध चल रहा था, तब युधिष्ठिर शाम को वेश बदलकर कहीं जाया करते थे। पांडवों ने इस रहस्य का पता लगाने के लिए एक दिन उनका पीछा किया, तो पता चला कि वे युद्ध क्षेत्र में पड़े घायलों की सेवा-सुश्रूषा किया करते थे।
भाइयों ने पूछा कि आप वेश बदलकर यह काम क्यों करते हैं? तो युधिष्ठिर ने कि इनमें से कई कौरव पक्ष के हैं। यदि मैं प्रकट रूप में होता, तो वे मुझे अपना कष्ट न बताते और मैं सच्ची सेवा के अधिकार से वंचित रह जाता। यह घटना सुनाने के बाद श्रीकृष्ण बोले– धर्म और परमार्थ अन्योन्याश्रित हैं। इसी से युधिष्ठिर धर्मराज कहलाते हैं। कृष्ण मुस्कुराए2 और कहा मित्र सद्भाव और मानव मात्र के लिए प्रेम, जिनके अंदर कूट-कूट कर भरा हो, उनसे सेवा धर्म निबाहे बिना रहा ही नहीं जाता।