
देवताओं के राजा इंद्र ने एक विशाल महल बनवाने की योजना बनाई। उन्होंने विश्वकर्मा को भव्य भवन बनाने के लिए कहा। विश्वकर्मा ने अपनी संपूर्ण क्षमता का उपयोग करते हुए अत्यंत सुंदर महल तैयार कर दिया। इन्द्र बहुत पुलकित हुए।
गर्व से उनका सिर तन गया। उन्होंने नारद को बुलाकर अपना महल दिखाते हुए पूछाः हे नारद आप सारे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाते रहते हैं। क्या ऐसा महल कहीं देखा है? ।
इंद्र के अहंकार को देखकर नारद मन ही मन मुस्कुराए और कहा कि इसके बारे में ठीक जानकारी तो लोमश ऋषि ही दे सकते हैं। क्योंकि उनकी लाखों वर्ष से अधिक है। इसके अलावा वे सारे ब्राह्मण में अनवरत घूमते रहते हैं। इंद्र ने ऋषि के पास चलने का आग्रह किया।
नारद इंद्र को लेकर लोमश ऋषि के पास गए। लोमश से इन्द्र ने वही सवाल दोहरायाः ऋषिवर, क्या मेरे नए महल जैसा कोई भव्य महल अतीत में आपने कभी देखा है? लोमश ने उत्तर दियाः इन्द्र, मैंने अतीत के अनेक इन्द्रों के महल देखे हैं। एक से एक खूबसूरत और गगनचुम्बी।
उनके सामने तुम्हारा यह महल फीका है। राजन! संसार में कुछ भी अंतिम और अद्वितीय नहीं है। इसलिए सर्वश्रेष्ठ का अहंकार पालना मूर्खता है।