बात उस समय की है, जब एथेंस के महान दार्शनिक जीनो की ख्याति फैली हुई थी। वे लोगों को दर्शनशास्त्र की शिक्षा दिया करते थे और इसके बदले पारिश्रमिक भी लेते थे। किलएनथिस को दर्शनशास्त्र पढ़ने की इच्छा हुई, लेकिन किलएनथिस तो बहुत गरीब था। वह कहां से जीनो को पारिश्रमिक देता। उसने मेहनत-मजदूरी कर जीनो से शिक्षा ग्रहण करने का निश्चय कर लिया। वह जीनो से शिक्षा ग्रहण करने प्रतिदिन उनके पास जाता था, किंतु उसकी विलक्षण प्रतिभा से कुछ लोगों को ईर्ष्या होने लगी और उन लोगों ने उस पर चोरी का आरोप लगाया। न्यायालय में उसने गवाह के रूप में अपने मालिकों को, जिनके यहां काम करता था, पेश किया। न्यायाधीश भी उसके स्वावलंबी स्वभाव पर बहुत प्रसन्न हुए और उसे आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाही, जिससे उसे भविष्य में मजदूरी न करनी पड़े. लेकिन उसने आर्थिक सहायता लेने से इनकार कर दिया और कहा- ‘आप आदेश दें कि मैं अपनी मेहनत के बल पर ही विद्या ग्रहण करूं। दान में आर्थिक सहायता लेने की मुझे कतई इच्छा नहीं ‘जीनो’ ने भी अपने शिष्य की बातों से प्रभावित होकर कहा- ‘इसका कहना सही है। स्वावलंबन का यह महान पाठ इसको इसी प्रकार सीखने दें।’