रोजाना एक कविता: आज पढ़िए रुसी कवि काएसिन कुलिएव की कविता ‘आदमी लौटकर नहीं आते’

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वसन्त चला जाएगा
चला जाएगा वसन्त फिर लौटने के लिए
अगले साल ऐसे ही शरद भी
वक़्त पर फिर से वापसी के लिए ।
पर मैं जाऊँगा जब भी लौट नहीं पाऊँगा
फिर से ।

लौटते हैं मेघ, घनघोर बरसने के लिए
प्यासी नहीं रहेगी धरती ।
चली जाएगी हिम और फिर लौटेगी
एक दिन ।
बस, मैं नहीं लौटूँगा, एकबारगी जाने के बाद ।

सुबह चली जाती है
और फिर लौटती है ।
दिन जाता है और फिर आता है
बारी आने पर ।
रात जाती है और लौट आरी है फिर
दिन ढलने पर ।

सिर्फ़ आदमी —
आदमी जाते हैं तो
लौटकर नहीं आते ।