रोजाना एक कविता: आज पढ़िए शायर प्रवीण फ़क़ीर की ग़ज़ल ‘एक कोशिश’

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उर्दू के नए जमाने के शायर। सादाबयानी के लिए मशहूर। नए जमाने की ग़जल में एक अहम मकाम बनाया।

सभी रिश्ते सभी नाते सिरे से तोड़ आया हूँ।
मुंडेरों पर दिए माटी के जलते छोड़ आया हूँ।।

जरूरत की इकन्नी और धेला,पाई थी जिसमे,
भरी थैली वो ईमां की ज़मी पर छोड़ आया हूँ।

जहाँ भी जिक्र था तेरा मुहब्बत की किताबों में,
सभी पन्ने हिफाज़त से वहीं पर मोड़ आया हूँ।

उड़ेंगें हौसलों से वो परिंदे,, पेड़ से लटके,
मैं जिनके पर नई परवाज़ से फिर जोड़ आया हूँ।

समंदर पी गया मैं दर्द के बहते किनारों का,
जो थे अहसास की माटी के घर सब तोड़ आया हूँ।