जयपुर : जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन रविवार को कॉमन येट अन कॉमन सत्र में सुधा मूर्ति ने अपनी किताब पर बातचीत की। सेशन में सुधा मूर्ति अपनी लाइफ के बारे में कई बातें मंच से साझा की। सुधा मूर्ति इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति की पत्नी हैं। इसके साथ ही सुधा मूर्ति इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष भी हैं। टाटा की पहली महिला इंजीनियर सुधा मूर्ति जानी-मानी लेखिका और समाजसेवी हैं।
उन्होंने कहा कि मुझे लोगों की जिंदगी के बारे में जानने की दिलचस्पी है, क्योंकि मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति सिर्फ एक व्यक्ति नहीं है बल्कि पूरी किताब है। उन्होंने अपने लेखन की प्रक्रिया पर बातचीत करते हुए कहा कि मैं खुश या उदास होने पर नहीं लिखती। मैं कहानियां बताना चाहती हूं, इसलिए मैं लिखती हूं। मुझे यह जानने में दिलचस्पी रहती है कि कहीं लोग आपस में क्यों झगड़ रहे होते हैं। कहीं ऐसा कुछ होता है तो मैं रुक जाती हूं। मैं शादियों में जाकर लोगों को देखती हूं। मैं देखना चाहती हूं कि एक लड़की एक लड़के, दोनों एक-दूसरे को कैसे देखते हैं। यह सारे अनुभव मेरी किताब में हैं और वे सत्य हैं। सिवाय आखिरी हिस्से के जिसमें मेरी नारायण मूर्ति से मुलाकात का किस्सा है। मैं जब छोटी थी तब इंजीनियर बनना चाहती थी। मैंने मेरे पिताजी से बात की। उन्होंने किसी से इसे लेकर सजेशन लिया तो गांव वालों ने कहा हर साल 800 इंजीनियर बनते हैं, ये मत करवाओ। लेकिन मेरे पिता ने मुझे आगे बढ़ाया। इसके बाद मैं न केवल इंजीनियर बनी बल्कि टाटा कंपनी की पहली महिला इंजीनियर बनी। इसके लिए मैं रतन टाटा की आभारी हूं, जिन्होंने मुझे अवसर दिया।
सुधा मूर्ति ने लोगों को आशीर्वाद देने वाली बात का जवाब देते हुए बोली मैं कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं हूं, मैं एक सिंपल पर्सन हूं। इसलिए आप लोग मुझे उनकी कैटेगरी में न लाएं। मैं एक साधारण इंसान हूं और वही रहना चाहती हूं। मेरी लाइफ में दो रिग्रेट है एक तो मुझे स्विमिंग नहीं आती, क्योंकि मैं जिस एरिया से आती हूं, वहां पीने के पानी की कमी है तो स्विमिंग के लिए सोचना दूर की बात है। दूसरा मुझे स्पोर्ट्स और योग बहुत पसंद हैं, लेकिन मैं कभी ये नहीं कर पाई। योगा स्पोर्ट्स और स्विमिंग आपके लाइफ के स्ट्रेस को कम करता है। इसलिए मुझे तो समय मिल नहीं पाया। आप अपने लिए समय निकालिए और जब भी खेलने का समय मिले बच्चे बनकर खेलना शुरू कर दीजिए।