खुसरो की ही मज़ार के बाहरबैठी हैं विस्थापन-बस्ती की कुछ औरतें सटकर!भीतर प्रवेश नहीं जिनका किसी भी निज़ाम में—एका ही होता है उनका जिरह-बख़्तर।हयात-ए-तय्याब,...
स्वप्न से किसने जगाया? मैं सुरभि हूं। छोड़ कोमल फूल का घर, ढूंढती हूं निर्झर। पूछती हूं नभ धरा से- क्या नहीं ऋतुराज आया? मैं ऋतुओं में न्यारा वसंतमैं अग-जग...