रोजाना एक कविता: पढ़िए पंकज मिसरा की कविता दाखिल खारिज

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A poem daily

प्रेम भी जीवन में इस तरह आया जैसे बचपन में
मेरे घर बैलगाड़ी आई थी
और उसके बाद दो जोड़ी बैल
जैसे तितलियाँ आईं रंगरंगीली, जिनके पीछे भागते हुए
जाने कितने दिन गुजार दिए, कभी पकड़ न पाए
और मान लिया ये प्यारी हैं, प्यार करो इनसे
गुनगुनाता हुआ भँवरा आया और फूलों के मार्फत
मेरी स्मृतियों में दाखिल हो गया

कुएँ आए, जिनमें झाँकते हुए देखते रहे अपना चेहरा
कुएँ की सुनते रहे आवाजें, बाल्टी गिरने, भरने, खींचने की
भर-भर पकड़ाते रहे बाल्टी मोहब्बत के नाम
इसी बहाने उसके हाथ की छुवन दर्ज हो गई
प्यार करने वाली चीजों की सूची में
जबकि उसने कहा था कि प्यार नामुमकिन-सी चीज है
यह उस वक्त की बात है, जब हम देह को नहीं, चुंबन को जानते थे
मेरे होठों पर पहला चुंबन उम्र में पाँच साल बड़ी लड़की ने रखा था
इसके लिए मंदिर में राधाकृष्ण की मूरत के सामने वाली जगह को चुना था
किसी कमबख्त ने देख लिया और घनघोर पाप बताकर फैला दिया था पूरे गाँव में
वह पापमुक्त के लिए फौरन ब्याह दी गई और उसी बरस कुआँ सूख गया

कितने पेड़ों से प्यार किया, नाम रखे
भरी दोपहरी अकेले में बतियाते रहे उनसे
प्रतीक्षा की टपकने वाले आमों की, कभी माँगे भी तो फौरन
चू पड़े एक साथ कई
इस तरह तमाम दोपहरियाँ मिठुआ, मिर्चहा, रिढ़िया, गुद्दर के नाम होती रहीं

गाँव से तीन मील दूर बहने वाली नदी से प्यार किया
अम्मा से नजर बचाकर जब-तब उसे छूने चला जाता था
नंगे होकर जाने कितनी बार छलांग लगाता रहा
नदी ने कभी गुस्सा नहीं किया मेरे नंगेपन पर

एक बार एक कुत्ते पर रीझ गया, जिसके सिर को कीड़े खा रहे थे,
उसकी आँखों में नमी थी जो प्यार की तरह थी
मैं उसे घर ले आया, लोगों ने मुझसे घृणा की, कुत्ते से भी
मैंने कुत्ते से प्यार किया, वो ठीक हो गया
प्यार से सुंदर कुछ भी नहीं है, यह मैं जान गया था।

बूढ़े पिता संभाल नहीं पाए तो बैल बेच दिए
बैलगाड़ी के पहिए बचे रह गए, ढाँचा बारिश में गल गया

अखबार में एक दिन खबर पढ़कर रोने लगा
कि तितलियाँ अब खत्म हो रही हैं,
भँवरे भी गुनगुन करते हुए नहीं दिखते हैं
कुँओं ने अवसाद में आत्महत्या कर ली है
बगिया में पेड़ों की एक-एक कर जान ले ली गई
हाँ, लड़कियाँ अभी भी पापमुक्ति के लिए सोलह की उम्र में
ब्याह दी जाती हैं।

ऐसी चीजों की फ़ेहरिस्त लंबी है,
प्यार करने लायक हर चीज खत्म हो रही है।

पंकज मिसरा