
शुरू शुरू में
थोड़ा सा.. बस थोड़ा सा प्यार चाहिए होता है
एक नज़र चाहिए होती है
एक असर चाहिए होता है
धीरे धीरे मुझे तुम से प्रेम है
बदल जाता है “तुम्हें कितना है” में
आंका जाता है सामर्थ्य
क्या कर सकते हो मेरे लिए?
और बात जान देने तक जाती है
मगर वो भी काफ़ी नहीं होता
अगर कोई और दे चुका हो जान पहले
जो हो चुका है वो हो रहे की हर पल
परीक्षा लेता रहता है
हम आना चाहते हैं प्रेम में अव्वल
हर बात हर शब्द हर काम
बन जाता है प्रेम साबित करने का
एक अवसर एक इम्तिहान
जिस में प्रेमी सफल भी हो तो
व्यक्ति असफल होता है
तब लगता है शायद
थोड़ा प्यार ही काफ़ी था