
नदी आकाश की बेटी है।
फूट-फूट जल देता है आकाश
भरता है बेटी का दामन,
नदी छाया है
पृथ्वी को
आकाश को भी,
जब जलती है आकाश की देह
तब नदी ही उसे देती है छाँह
बेटियाँ छाया ही तो हैं,
स्रष्टा भी अपनी उदासी में
नदियों के पास ही गया है
मैंने सुनी है ईश्वर की कथा-
त्रिभुवन थक कर
जमुना तीरे बैठते थे
जमुना बेटी ही तो है!
अँधेरे से घबराए जब कान्ह
तब राधा ने ही दिया आँचल
राधा नदी ही तो थी!
ये सब ईश्वर की कथाएँ हैं
कोई मानेगा कोई नहीं मानेगा!
इतिहास को तो मानते हैं?
सभ्यताएँ तो जानते हैं?
नदी सभ्यता ही तो है!
आब से ही सम्भव रही है आबादी
बेटियों ने ही पोसा-पाला है
मानव-जीवन
बड़ी हास्यास्पद बात है
जिन नदियों-बेटियों के बिना
हम प्यासे मर जाएंगे
उन्हीं को बचाने के लिए
अभियान चलाने पड़ रहे हैं
और ये बात समय का
हास्यास्पद सच-भर नहीं!
ये हमारी हार है,
मानवता की हार!