रोजाना एक कविता: पढ़िए अनिल कार्की की कविता ‘टेलीप्रॉम्टर

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A poem a day
you in life
not like emla and calligraphy
sensitive to language but intimidated
hesitant contract teachers

तुम जिंदगी में
इमला और सुलेख की तरह नहीं
भाषा में संवेदनशील लेकिन डरे हुए
सकुचाये ठेके में पढ़ाने वाले
प्रोफेसर की तरह भी नहीं थी

तुम मेरी ज़िन्दगी में टेलीप्रॉम्टर की तरह थी
मेरी भाषा की बैसाखी
मेरी भंगिमाओं की माउथपीस सी

कितना बाजारू रिश्ता था हमारा
एक दिन एक मामूली सी तकनीक गड़बड़ी ने
मुझे मेरी ओकात बता दी
और मैं हकलाने लगा।

अनिल कार्की