जीवन ऊर्जा: हर औरत के अंदर झांसी की रानी है

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रानी लक्ष्मीबाई एक भारतीय रानी थी। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 में हुआ था। वे 1843 से 1853 तक झांसी की मराठा रियासत के महाराजा गंगाधर राव महारानी पत्नी थी। उन्हें ‘झांसी की रानी’ भी कहा जाता है। वे 1857 के भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध की प्रमुख हस्तियों में से एक थीं और भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए ब्रिटिश राज के प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं। उन्होंने अपनी आखरी सांस 18 जून 1858 में ली थी।

मैं झांसी की रानी हूं और इस धरती मां की बेटी, मेरे होते हुए कोई भी फिरंगी झांसी को हाथ नहीं लगा सकता, मैं अपनी झांसी कभी नहीं दूंगी चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान भी क्यों न देनी पड़े झांसी मेरी आन है.. शान है.. ईमान है..। हम लडे़ंगे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां अपनी आज़ादी का उत्सव मना सके। अपने हौसले की एक कहानी बनाना, हो सके तो खुद को झांसी की रानी बनाना। मैं अपनी झांसी का आत्म समर्पण नहीं होने दूंगी। हम आज़ादी के लिए लड़ते हैं, अगर कृष्ण के शब्दों में कहे तो, हम विजयी होंगे, तो ही विजय के फल का आनद लेंगे। मैदाने जंग में मारना है, फिरंगी से नहीं हारना है। मेरे स्वर्गीय पति ने शान्ति की कला पर अपना ध्यान समर्पित किया था। हम स्वयं को तैयार कर रहे है, यह अंग्रेजों से लड़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यदि युद्ध के मैदान में हार गए और मारे गए तो निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त करेंगे। हर औरत के अंदर झांसी की रानी है। मातृभूमि के लिए झांसी की रानी ने जान गवाई थी, अरि दल कांप गया रण में जब लक्ष्मीबाई आई थी।