
सरसों ओढ़े पीत शृंगार
भोर के होंट देते पुकार,
मीरा के श्रवणों को हैं सुख देती गिरिधर की ध्वनि,
नेह के रंग अपने संग लाई फाल्गुनी।
रंगों के महोत्सव में, फाल्गुनी गाए फाग,
अच्छाई की साक्षी हैं होलिका जलती आग,
वैर, अपरिचय और कलेष का करती जो संहार,
अपनों के मिलन का है होली ऐसा त्यौहार।
आज अपकार और दंभ का दहन कर,
नेकी एवं आस्था का ग्रहण कर,
द्वेष मिटे, अश्मन जो हुए अंतर्मन,
मीत बने जो थे दुश्मन।
मूंठ कपोल को लगाए गुलाल,
पिचकार मिटाए गंभीर सवाल,
रिश्तों के सीमा के प्रतिबंध
अनायास टूटे, जब होली ने गाए इतिहास के छंद।
कंचन क्षणों की स्मृति हैं ये रंग,
रोमरोम में रूधीर उफानते हैं ये रंग,
आज हर भूूल-चूक की एक ही बोली है,
‘बुरा ना मानो होली है’।
नवी मुंबई के कॉलेज क्राइस्ट एकेडमी में 11 वीं की छात्रा मोनिका पवन शर्मा
साहित्य की शौकीन हैं। इन्होंने हिन्दी और अंग्रेजी में कविताएं, कहानी और अन्य विधाओं में लेखन किया है।