इक्कीसवीं सदी का 20वां साल यानी 2020 मानव सभ्यता रहने तक भुलाया नहीं जा सकेगा। आधुनिक युग में बुलेट ट्रेन की रफ्तार पर सवार इंसान कभी चांद को फतेह करने की उड़ान भर रहा है तो कभी धरती गहराइयों को नापने में। चराचर जगत की सबसे सशक्त प्रजाति किस कदर एक अनजान वायरस के समक्ष घुटने टेक देगी, इसकी तो कल्पना तक किसी ने नहीं की होगी। हर चुनौतियों को चुटकियों में हल करने वाला इंसान इतना बेबस हो जाएगा, ये भावी पीढ़ियों के लिए गहन अध्ययन और शोध का विषय भी रहेगा।
राजेश कसेरा
इस साल मानव जाति ने जिंदगी को मुट्ठी में बंद रेत की मानिद फिसलते देखा। बेबसी और लाचारी का भयावह मंजर खुली आंखों से देखा। असमय अपनों को काल का ग्रास बनते देखा। मौत का ऐसे भयंकर तांडव की शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। उन सभी कपोल कल्पित खौफनाक मंजर को साकार होते देखा, जिसकी कल्पना मात्र से रौंगटे खड़े हो जाते हैं। शरीर में सिरहन दौड़ने लगती है। कोविड-19 ने धरती के सबसे समृद्ध प्राणी की जड़ों को हिला कर रख दिया। आखिर चूक कहां हो गई? फिलहाल तो यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। पर, जिन हालात से पूरी दुनिया गुजरी उससे एक बात तो साफ हो गई कि हम असुरक्षित, अनिश्चितता और आशंका से भरे माहौल में जी रहे हैं।
घनघोर निराशा के इस वातावरण में यदि कुछ सकारात्मक देखने को मिला तो वो था, जीने के लिए जद्दोजहद करना। इस पर जोर देना कि जिंदा कैसे रहना है? कोरोनाकाल ने सिर्फ सांसों की डोर को तोड़ने का काम नहीं किया, बल्कि एक परिवार की आर्थिक रीढ़ को कमजोर भी कर दिया। रोजगार छिन गए, कामधंधे चौपट हो गए। कर्ज के बोझ तले लोग दब गए। जिंदगी को बचाने के सारे विकल्पों ने साथ छोड़ दिया। जिन नियोक्ताओं के भरोसे लोगों ने जीवन के सभी सुनहरे पलों को दांव पर लगा दिया उन्होंने भी संकट के समय हाथ छिटक दिया। कोरोना वायरस ने तो फिर भी एक बार में प्राण छीन लिए, पर विपरीत परिस्थितियों में “अपनों” के दिए गए छल ने तिल-तिल कर मारा।
पर, कहते हैं ना अच्छे समय से ज्यादा बुरा समय सिखाकर जाता है, इसलिए कोरोनाकाल सबको कड़वे-मीठे अनुभव भी देकर गया। जिंदगी और मौत के सबक के साथ सही-गलत और अच्छे-बुरे का पाठ पढ़ा गया। आने वाला साल 2021 व पूरी सदी मानव जाति के लिए सुरक्षित, भयहीन और कल्याणकारी हो, इसके ठोस व कारगर कदम उठाने होंगे। फुलप्रूफ योजनाएं बनानी होंगी, जिससे कि फिर कोई कोरोना वायरस मानवता के विनाश का कारण नहीं बने। न केवल मौजूदा समय को जीतना पड़ेगा, बल्कि भविष्य की पाल कसकर बांधनी होगी। तब कहीं जाकर विकास की सोच समृद्धता की चादर ओढ़ पाएगी।
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राजेश कसेरावरिष्ठ पत्रकार हैं
विगत 17 वर्षों से पत्रका
रिता में सक्रिय विविध विषयों पर लेखन
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