spot_img
Homepoemआज सोचता हूं

आज सोचता हूं

आज सोचता हूं
तुमने मांगा था समय थोड़ा
मैं दे न सका या द‍िया नहीं
पर जो भी हो
तुम्‍हें जाना नहीं चाह‍िए था
यूं मुझे अकेला छोड़कर
आज सोचता हूं क‍ि
तुमने मांगा था प्रेम
मैं दे न सका या द‍िया नहीं
पर तुम्‍हें ऐसे रूठना नहीं था
यूं मुझे अकेला छोड़
आज सोचता हूं क‍ि
तुमने मांगा था थोड़ा सा साथ
मैं दे न सका या द‍िया नहीं
तुम्‍हें छोड़ना नहीं चाह‍िए था साथ
मुझे यूं ही अकेला
सोचता हूं क‍ि तुम क्‍यों नहीं देख पाई
मेरे भीतर, मेरी आत्‍मा में
क्‍यों नहीं समझ पाई मेरे भाव
और छोड़ गई मुझे
फ‍िर सोचता हूं तुम भी
ठीक ऐसे ही सोचती होगी क‍ि
आख‍िर क्‍यों नहीं समझ सका मैं
और तुम्‍हें छोड़ना पड़ा मुझे

अरुण लाल
युवा कवि और पत्रकार 
संपादक 
आईजीआर
spot_imgspot_imgspot_img
इससे जुडी खबरें
spot_imgspot_imgspot_img

सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली खबर