
गरिमा जैन : नारी
भगवान ने दो जीव बनाये
नर भारी
कोमलांगी नारी
रथ के दो पहिये थे
साथ चलते
और रुकते थे
एक – सा
सम्मान था
ये सतयुग था
फिर अचानक
नर को लगा
कि
मैं हूँ भारी
तो क्यों करूँ
सम्मानित नारी
उसे यह वहम भा गया
और अपने ही
भुलावे में वो आ गया
भूल गया कि
दोनों से ही
चलती है सृष्टि
हर धर्म करता है
इस कथ्य की पुष्टि
ये कलयुग है
करुणा, वात्सल्य हैं
नारी के गहने
उसकी सौम्यता के
क्या कहने
हर नारी की
अपनी गरिमा है
उसका गौरव ही
उसकी महिमा है
नारी का सम्मान
हमारी संस्कृति की
पहचान है
संसार को चलाने वाली
मातृशक्ति
महान है
एक छोटा-सा
प्रण करें आज
नारी होने के नाते
अपना फर्ज़ निभायेंगे
और
इस कलयुग को
फिर से
सतयुग बनायेंगे
हम पहचानें
अपनी शक्ति
छू लें वो आकाश
जो जुनून हो
उड़ने का
तो
मिल ही जाती है
पंखों को परवाज़।