युद्ध की महामारी का क्या किया जाए?

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तनाव खतरनाक चीज है. व्यक्तिगत् हो या फिर देशों के स्तर पर, नाजुक बिंदुओं पर चीजें ढह जाती हैं और हालात तबाही वाले होते हैं.
यूक्रेन को लेकर रूस और अमेरिका के बीच एक अलग कहानी चल रही है. रिपोर्ट्स और तस्वीरें खींचतान की लंबी दास्तां बयां कर रही हैं. यूक्रेन सीमा पर रूस के 1 लाख सैनिक, इधर अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सहायता की पहली खेप. ऊपर से बयानबाजी.

यूक्रेन+ अमेरिका+ पश्चिमी देश = रूस
एक लाख सैनिकों की तैनाती मजाक नहीं है ऊपर से जिस तरह के दोतरफा तेवर हैं उससे चीजें अधर में और दहशत से भर रही हैं. युद्ध का जखीरा तैयार है और रूसी सैन्य प्रमुख वालेरी गेरासिमोव कहते हैं-युद्ध की कोई योजना नहीं, जबकि पुतिन कहते हैं-पश्चिमी देश आक्रामक हुए तो जवाबी कार्रवाई में देर नहीं की जाएगी.

रही-सही कसर नेटो महासचिव की चेतावनियां पूरी कर रही हैं- वे मानों तैयार ही बैठे हैं. शेष अमेरिका के हिस्से में हैं जिसका दावा है कि रूस की हर योजना पता है. बाइडन के बयान भी कम क्रांतिकारी नहीं हैं.
इधर यूक्रेन के नाटो में जानें की देर भर है और उधर रूस के हमले का गणित है जहां आदेश भर का इंतजार है.
रहा शेष बाइडन की धमकियां बता रही हैं.
सोच रहा हूं बातचीत चलती रहेे तो ठीक है- वरना युद्ध की महामारी का इलाज और उसकेे प्रभाव कितने भीषण हैं इसकी घोषणाएं इतिहास करता रहा है. कहीं सारी दुनिया ना भिड़ जाए- उससे खतरनाक वायरस क्या ही होगा..!