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सरगोशियां : हम युद्ध नहीं चाहते

यूक्रेन की सीमा पर जब से तनाव शुरू हुआ है, युद्ध से बचने की अपीलें दुनियाभर से आ रही हैं। लेकिन, अपील सीधी व स्पष्ट हो..ऐसे देश व लोग गिनती के हैं। ‘हम युद्ध नहीं चाहते, मलतब किसी के भू-भाग पर नहीं चाहते।’ ऐसा कहने वाले कितने हैं! शर्तों के साथ युद्ध-निंदा नहीं होनी चाहिए। आज युद्ध-निंदा इसलिए हो रही है, क्योंकि उसका परिणाम कुछ की ‘विचारधारा व हितों’ के अनुकूल नहीं है। वहीं, जो उत्सव मना रहे हैं वह तब युद्ध-निंदा कर रहे होते जब स्थितियां वर्तमान के विपरीत होतीं।
क्या हम सच में युद्ध नहीं चाहते! क्या हम सच में भौगोलिक सीमाओं को ‘मानवीयता की सीमा’ नहीं मानते! क्या हम सच में अपने हित, स्वार्थ व विचारधारा के बाहर विश्व बंधुत्व का अस्तित्व स्वीकारते हैं, या बंधुत्व की सीमा अपने हित की परिधि में ही लागू होती है! यह प्रश्न सबको स्वयं से पूछने चाहिए। यह सच है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा व वैचारिक प्रतिबद्धता ने ‘दया, प्रेम व करुणा’ की व्याख्याओं व मान्यताओं के बहुत से पैमाने रच दिए हैं। एक पंथ के लिए दूसरे पंथ के लोग दया, प्रेम व करुणा के सुपात्र नहीं रह जाते। एक देश के लिए दूसरे देश के लोग महज शत्रु होकर रह जाते हैं।
और इसीलिए, साम्राज्य विस्तार को दुनिया में बड़े युद्ध हुए हैं। इन युद्धों का कोई आमंत्रण नहीं भेजा गया था, साम्राज्यवाद की कामनाएं ही उनका आमंत्रण थीं….लेकिन विजेताओं का गौरवगान आज की पीढियां कर रही हैं। उनके लिए विजय महत्वपूर्ण है। संकट के समय ‘हम युद्ध नहीं चाहते’ और युद्ध बीत जाने पर ‘जो जीता वह महान..वह सिकंदर’ क्या यही हमारी बौद्धिक यात्रा है!
हमारा इतिहास सिकन्दर, सीज़र, चंगेज, नेपोलियन जैसे ‘वीर’ सम्राटों की गौरव-गाधाओं से भरा है। इनकी वीरता का मापदण्ड है सत्ता का प्रसार, साम्राज्य का विस्तार अपनी शक्ति द्वारा दूसरों का दमन।
इनकी ‘वीरता’ की अभिव्यक्ति है सत्ता के बन्धनों का विस्तार। दासता की जंजीरों का प्रसार। जो व्यक्ति शक्ति द्वारा जितने अधिक व्यक्तियों को जंजीरों में जकड़ पाया। उतना ही वीर माना गया। जिसके हाथों ने जितना अधिक मानवीय रक्त बहाया वह उतना ही वीर माना गया। जिसके अत्याचार से लोग जितने अधिक पीड़ित हुए वह उतना ही वीर माना गया।
सिकन्दर की वीरता के प्रतीक हैं ईरान की राजधानी पर्सिपोलिस के जलते राजमहल, शील-अपहृता राजकुमारियां और रानियां, काथज नगर में खड़े लाशों के पहाड़। चंगेज की वीरता के प्रतीक है, मध्य और उत्तर-पश्चिम एशिया के धूल-धूसरित हज़ारों महानगर जिनकी सभ्यता से उसे और उसके कबाइली मंगोलों को घृणा थी। कुल मिलाकर वीरता रक्तपात पर पली, पाशविक अत्याचार में अट्टहास कर हंसी, दमन और दासता में व्याप्त हुई। श्रेष्ठता का मापदण्ड रहा मारना न कि बचाना, बांधना न कि मुक्त करना, दबाना न कि निर्बन्ध करना, पीड़न न कि पीड़ा-मुक्ति।
उनके लिए,,,,,सत्ता वीरता की प्रतीक रही है, न कि स्वतंत्रता।
‘सत्ता बंदूक की नली से निकलती है।’ ‘युद्ध से ही नायक का जन्म होता है।’ जैसे, लतीफे आज भी खूब तैरते हैं। लेकिन, यह उचित नहीं है।
सत्ता के प्रसार के लिए होने वाला कोई युद्ध हमें स्वीकार नहीं।
हम युद्ध नहीं चाहते, क्योंकि हमसे अधिक उसकी भयावहता का साक्षी कोई नहीं। हमारे लिए…वीरता की प्रतीक सत्ता नहीं, स्वतंत्रता है।

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