ग़रीबों का मोहल्ला है। बड़ी ख्वाहिशें इधर नहीं दिखती कि गलियां बहुत संकड़ी हैं। उनके आने के लिए रास्तों की हैसियत छोटी है। रोज़ शाम गली में गीत बजता है। मैं छत पर बैठा होता हूँ। चारपाई से उठकर गली में झांकने जाता हूँ कि ये कौन प्रेमी है। जो बिछोह के कैनवास को रंग रहा है। अलविदा कहने से मना कर रहा।
बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी…
गली में हर तीसरे घर के आगे एक कबट रखा हुआ है। कबट माने लकड़ी और लोहे के चद्दर से बना कियोस्क। कबट के आगे सस्ते चिप्स और मैदे से बनी खाद्य सामग्री के पैकेट लटके हुए हैं। भीतर हल्की रोशनी में मालूम पड़ता है कि हर तरह का माल है। एक भरी पूरी दुकान। इस तरह बाज़ार गलियों तक आ गए हैं।
जिधर से गीत के सुर आते हैं, उधर एक तेरह चौदह बरस उम्र का बच्चा चुप बैठा हुआ है। वह गीत में खोया हुआ है या कुछ और सोच रहा है, मैं समझ नहीं पाता। उसके पास तीन चार बरस का बच्चा सोया हुआ है। मैं ये सब देखता हूँ मगर महेंद्र कपूर इस सब को देखे बिना गाए जाते हैं।
क्या मुझे कॉलेज के दिन याद आ रहे हैं? नहीं। मैं बस कुछ बरस पीछे के केसी को याद कर पाता हूँ। वह जो कुछ सोचे बिना, किसी बात की परवाह से परे बातें बेवजह लिखता जाता था। छत पर रेगिस्तान की ठंडी-गरम हवा में राली पर अधलेटा करवटें बदलता रहता था। मैं याद से मुस्कुराता हूँ।
किसको पसन्द है ये गीत? मैं सोचने लगता हूँ तो याद आता है कि हर घर लगभग जीने की जद्दोजहद में लगा है। कहाँ प्यार किसी दिल पर इस तरह दस्तक देता होगा कि सबकुछ भुलाया जा सके और रात को किसी गीत से आबाद रखा जाए।
पिछली जाती हुई गर्मियों में किसी छत पर गीत बजता था। ये दिल और उनकी निग़ाहों के साए… मैं बहुत दूर से आते सुर सुनता रहता था। मेरे भीतर गीत साफ बजता रहता था। जैसे आकाशवाणी के स्टूडियो में हूँ और शाम की ड्यूटी चल रही है। मैं फ़िल्म संगीत प्ले कर रहा हूँ।
किसी शाम वह गीत बजना बंद हो गया। पहाड़ों को चूमने वाली चंचल किरणों की स्मृति कहीं खो गई। अंधेरे में सब साए गुम हो गए। रेलवे ओवरब्रिज पर खड़े लैम्पपोस्ट के पार कुछ बादलों जैसा दिखता था। मैं पुल पार करती गाड़ियों की रोशनी देखता रहता। एक बेसिक मोबाइल है। वह साथ रहता है। फेसबुक, इंस्टा और व्हाट्स एप टैब में है। बेसिक पर कोई आवाज़ नहीं आती। शायद सब गलियों में इतनी ही उदासी छाई है। हताशा वैश्विक हो गई है। अधिकतर चाहनाएँ अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गई है।
ये जो कुछ गीत कहीं कोई प्ले कर रहा होता है, उसी का मन उदासी के टप्पर पर किसी बून्द की तरह बरसता होगा।
उसे प्यार। मैं टैब उठाता हूँ और लिखने लगता हूँ। मुझे फेसबुक मैमोरी कहती है, बातें बेवजह हैं और बहुत सी हैं। शुक्रिया।