
प्रेम में गले लगने और लगाने का सुख आत्मा में प्रवेश करता है और प्रेम को प्रगाढ़ बनाता है। गले लगाने का सबब तुम तब समझोगे जब इस प्यास को अपनी छाती के भारीपन में महसूस करोगे। जैसे एक शिशु की माँ अपने छाती के भारीपन और उसमें उठ रही टीस को महसूस करती है । बच्चे को अपनी छाती से लगाकर केवल बच्चे का पेट नहीं भरती बल्कि खुद उससे कहीं अधिक उस संतुष्टि का अनुभव करती है जो बच्चे की भूख मिटाकर वह अपनी छाती के भारीपन से और उसकी टस- टस हो रही पीड़ा से मुक्ति पाकर आत्म सुख को भी अनुभव करती है। ठीक वैसे ही प्रेम के आलिंगन में प्रेम के वात्सल्य और विश्वास की भावना भी समाहित होती है । शरीर भावनाओं की भाषा की लिपि है जिसमें सम्पूर्ण शब्दकोश और मात्राएँ समाहित हैं और इसको वाचना प्रेम को स्पर्श प्रदान करता है। गले लगने को आभूषण न बनाओं उसे प्रेम हो जाने दो छाती के भारीपन को प्रेम में घुल जाने दो, उसे आलिंगन हो जाने दो उसे आत्मा में प्रवेश कर जाने दो।।