सरगोशियां: लिखना और जीविका

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saragoshiyaan: likhana aur jeevika

मेरे लिखने की शुरुआत कुछ यूँ हुई जब लिस्बन (मेन) हाइ स्कूल में मैंने एक ‘विलेज वोमिट’ नामक पत्रिका निकाली, जिसमें अपने ही सभी शिक्षकों पर व्यंग्य लिखे। वे व्यंग्य साधारण कटाक्ष न होकर उनके विषय में चरम घृणास्पद टिप्पणियाँ थी। यह पत्रिका मेरे शिक्षकों तक पहुँच गयी, और उन्हें पता लग गया कि यह मैंने ही लिखे हैं। ज़ाहिर है मुझे सजा मिली, और विद्यालय के एक कमरे में बंद कर दिया गया। लेकिन, उन्होंने मुझे विद्यालय से नहीं निकाला, बल्कि मेरी रचनात्मकता को सही दिशा देने का निर्णय लिया।

मुझे प्रशिक्षित करने के लिए एक जॉन गोल्ड नामक व्यक्ति चुने गए, जिन्हें मैं अपनी लेखनी का श्रेय देता हूँ। उन्होंने मुझे खेल रिपोर्ताज से लेखन शुरू करने कहा। मैंने उन्हें कहा कि खेल से अधिक तो मुझे बीजगणित की समझ है। उन्होंने कहा कि तुम्हें वही तो सिखाने की ज़रूरत है जिसकी तुम्हें समझ नहीं।

मैंने एक बास्केटबॉल खेल के रिपोर्ट से लिखना शुरू किया। मैं खेल देख कर पीले कागज़ों पर रिपोर्ट लिख कर उनके पास ले गया। उन्होंने कुछ त्रुटियाँ दिखायी, लेकिन कहा कि अधिकांश रिपोर्ट अच्छी लिखी गयी है। मैंने उन्हें कहा कि यह त्रुटियाँ मैं ग़ौर से देख लूँगा ताकि आगे से ऐसी ग़लती नहीं हो। उन्होंने हँस कर कहा- अगर इसी तरह तुम अपनी ग़लतियाँ सुधारते रहे, तो एक दिन तुम लिख कर जीवन-यापन कर लोगे। उनकी बात सच साबित हुई। मैं लिखता ही चला गया। यही मेरी जीविका बन गयी।”