Prayagraj : ’श्वान गान’ में दिखा आदमी का पिंजरा और समय का काटा रास्ता

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नाटक ने सोचने पर मजबूर किया कि हम सच में कितने आज़ाद हैं?
प्रयागराज : (Prayagraj
) उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार (North Central Zone Cultural Centre, Ministry of Culture, GovernmentIndia) द्वारा आयोजित छह दिवसीय नाट्य समारोह के तहत मंगलवार को केंद्र प्रेक्षागृह में निखिलेश कुमार मौर्य के निर्देशन में नाटक “श्वान गान“ (“Shwan Gaan”)का प्रभावशाली मंचन किया गया। यह नाटक अपने गहरे प्रतीकों और तीखे संवादों से दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है।

तीन पात्रों पर आधारित इस नाटक की कहानी दो मुख्य किरदारों पीटर और उत्कर्ष के इर्द-गिर्द घूमती है। नाटक में उत्कर्ष को एक आम आदमी और समय चक्र के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि पीटर के माध्यम से समाज की जटिल मानसिक संरचना को उकेरा गया है।

नाटक में एक संवाद आता है “अपर मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास की डिवाइडिंग लाइन क्या है?“ (“What is the dividing line between the upper middle class and the lower middle class?”) यह सवाल समाज में वर्गों के बीच की अदृश्य रेखा की ओर इशारा करता है। वहीं, “कभी-कभी आदमी को लम्बा रास्ता लेना पड़ता है, शॉर्टकट लेने के लिए“ जैसे संवाद जीवन की सच्चाइयों से साक्षात्कार कराते हैं।

पूरे नाटक में “चिड़ियाघर“(“zoo”) शब्द का प्रतीकात्मक प्रयोग किया गया है, जो दर्शाता है कि किस तरह इंसान भी अपने परिवार, जिम्मेदारियों और सामाजिक ढांचे में एक कैद पक्षी की तरह जीवन जीता है। पीटर और उत्कर्ष को “अषाढ़ का एक दिन“ के कालिदास और विलोम जैसे किरदारों की छाया में गढ़ा गया है। पीटर के माध्यम से जहां मानव मन के विविध पक्षो जैसे लैंगिक पहचान की प्रस्तुति हुई, वहीं उत्कर्ष एक सामाजिक आईना बनकर सामने आया, जो आज की दुनिया की भौतिकता, वैश्वीकरण, सामाजिक असमानता, गलतफहमियों और अकेलेपन जैसे विषयों को उजागर करता है।

“श्वान गान“ न केवल एक नाटक था, बल्कि एक सोच थी अस्तित्ववाद पर आधारित, जो जीवन के गहरे प्रश्नों से हमारा सामना कराता है। नाटक में बृजेन्द्र कुमार सिंह, प्रियांशु शुक्ला, आकृति वर्मा और अभिषेक गुप्ता (Brijendra Kumar Singh, Priyanshu Shukla, Aakriti Verma andAbhishek Gupta) ने अपने अभिनय से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। वहीं, प्रकाश परिकल्पना की जिम्मेदारी सिद्धार्थ पाल ने निभाई, जो मंच पर एक अलग ही वातावरण रचने में सफल रहे। कार्यक्रम प्रभारी मदन मोहन मणि ने सभी कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन मधुकांक मिश्रा ने किया।