बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को

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अदम गोंडवी

बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को।

शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को।

पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है,
इस अहद की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को।

कवि परिचय:

गोंडा के कवि अदम गोंडवी अपने क्रांतिकारी तेवर के लिए मशहूर रहे हैं। बगावती जज्बात से भरे इनके शेर और काव्य पंक्तियां लोगों को झकझोरती रही हैं। इन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से वंचित जनता के हक की बात कही है।