
थकी हुई – बेहोश – बच्चों के बीच
सोई है एक लड़की
जो आधी-आधी रात महकते आम के बौर
का जादू महसूस करती थी – मेरे पास,
बात पर बात, होठों के बीच तलाशते होठ
एक छोटा-सा शब्द जो नाम दे सके उस सब को
जो था मेरे और उसके बीच – घेरे था हमें
जिसके पीछे पागल हम विराट अज्ञात में मुड़ गए थे
जुड़ गए थे हम प्रणामबद्ध हाथों की तरह
..दिन भर की थकान, अलगाव कभी-कभी दरार
तनाव, तकरार के बाद सोई है एक लड़की
नींद में तलाशती हुई वे जूही के फूल
जो बिस्तर में मसल कर नीचे गिर गए थे
तलाशती हुई वह समुद्र का ज्वार – क्वांरी मांग के पार
वह संसार जो बना था सिर्फ
फूल और धूप और नशे और प्यास से
और छत पर चांदनी में पीपल पत्तों से कांपते
निर्वसन शरीर के उजास से
नींद में
बरसों बाद उमगता है वह छोटा-सा शब्द
जिसे डाल से लाल कनेर की तरह तोड़ने को वह बढ़ाई है हाथ हाथ जो असल में थपकी देता है पास में कुनमुनाती हुई बच्ची को
और थकान की अस्फुट कराह के साथ
करवट बदल कर वह फिर बह जाती है
उसी लौटते ज्वार में जहां
महकते आम की सुगंध जाल में छटपटाती है सोन मछली
और वह तुरंत लौट आती है क्योंकि किनारे पर है दूसरा बच्चा तखत के- कहीं गिर न जाए
थकी हुई बेहोश, बच्चों के बीच
सोई है एक लड़की और
आम के बौर और वसंत की धूप और
छत की चांदनी जाग जाग कर तलाशते हैं वह एक शब्द छोटा-सा शब्द जो जूही के मसले फूल की तरह बिस्तर से
पता नहीं कब कहां गिर गया!

धर्मवीर भारती
सुप्रसिद्ध साहित्यकार व संपादक, जन्म 25 दिसंबर, 1926, इलाहाबाद : अवसान: 4 सितंबर, प्रमुख कृतियां: गुनाहों का देवता, अंधा युग। फिल्म सूरज का सातवां घोड़ा। सम्मान : पद्मश्री।