नई दिल्ली : (New Delhi) बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) (Special Intensive Revision) का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) (Association for Democratic Reforms) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में एसआईआर के लिए जारी आदेश को रद्द करने की मांग की है।
एडीआर की ओर से वकील प्रशांत भूषण (Advocate Prashant Bhushan) ने याचिका दाखिल कर कहा है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश मनमाना है। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग का ये आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 32 और 326 के साथ साथ जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन है। निर्वाचन आयोग का ये आदेश मतदाता पंजीकरण नियम के नियम 21ए का भी उल्लंघन करता है।
याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग (Election Commission) का आदेश न सिर्फ मनमाना है बल्कि ये उचित प्रक्रिया के बगैर जारी किया गया है। इससे लाखों मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। निर्वाचन आयोग के इस कदम से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित होगा। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए अनुचित रुप से काफी कम समय-सीमा रखी गयी है क्योंकि राज्य में ऐसे लाखों नागरिक हैं जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे और जिनके पास विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेश के तहत मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। याचिका में कहा गया है कि कुछ लोग इन दस्तावेजों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए काफी कम समय-सीमा होने के चलते उन्हें समय पर ऐसा करने से रोक सकती है।
याचिका में कहा गया है कि बिहार एक ऐसा राज्य है जहां गरीबी और पलायन उच्च स्तर पर है और यहां एक बड़ी आबादी के पास जन्म प्रमाण पत्र या अपने माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे जरुरी दस्तावेज नहीं हैं। बिहार में इस तरह का अंतिम पुनरीक्षण 2003 में किया गया था।