
इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता : बेटे की लाश को रिक्शे में ले जाती मां

अरुण लाल
कोरोना महामारी के दौरान अब तक की सबसे दर्दनाक तस्वीर मंगलवार को प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र बनारस से सामने आई, जहां एक मां अपने युवा बेटे की इलाज के अभाव में मौत के बाद उसे रिक्शे में डालकर घर ले जाने की तैयारी कर रही है। इस फोटो के सामने आने के बाद पूरे देश में दर्द की एक लहर दौड पड़ी है।
बात दें कि अपने बीमार बेटे को लेकर जौनपुर की रहने वाली चंद्रकला सिंह ने लगातार पांच बार इलाज के लिए बीएचयू अस्पताल में जाकर लाइन लगाई, लेकिन किसी डॉक्टर ने नहीं देखा। सोमवार को तबीयत ज्यादा खराब हुई तो अपनी मां चंद्रकला सिंह के साथ वह इलाज के लिए बीएचयू आया था। जब वहां डॉक्टरों ने कोरोना की वजह से नहीं देखा, तो ककरमत्ता के प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए। वहां भी उसे भर्ती नहीं किया गया। इसके बाद उसकी मां की कदमों में तड़प-तड़प कर मौत हो गई।
गौरतलब है कि कोराना की दूसरी लहर के बाद पूरे देश में अस्पतालों की दशा दयनीय हो रही है। डॉक्टरों की अथक मेहनत के बावजूद हर तरफ अफरा-तफरी है। देश के सर्वोच्च नेता कोरोना के बचाव के उपाय खोजने की बजाए बड़ी-बड़ी रैलियां कर रहे हैं। वे रैली में आई भीड़ की तस्वीर दिखाकर शान बघार रहे हैं। किसी को किसी बात की चिंता नहीं है। यहां तक कि प्रधानमंत्री तक बंगाल की भीड पर खुशी जाहिर कर रहे हैं। ये लोग हर हाल में जनतंत्र में जनता का मत पाना चाहता है, फिर चाहे उसकी कीमत लोगों की जान ही क्यों न हो।
आज प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में हृदयविदायक तस्वीर आई सामने है। जहां एक मां बेटे की मौत के बाद एंबुलेंस न मिलने पर टोटो में बेटे का शव ले जाते दिख रही है। वहां मां के पैरों के पास बेटे का शव रखा हुआ है। उत्तर प्रदेश में हालात काबू में होने की बात करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास इस घटना का मौखिक जवाब तो जरूर हो सकता है, लेकिन यह तस्वीर उनकी आत्मा को बोलने नहीं देगी। यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के सिस्टम की सच्चाई दिखा रही है।
बता दें कि यह मां बीएचयू के सर सुंदर लाल चिकित्सालय में बेटे के किडनी की समस्या को लेकर पहुंची थी। जहां इलाज न होने से बेटे की मौत हो गई। बता दें कि कोरोना के समय बनारस के स्वास्थ्य की बागडोर प्रधानमंत्री के सबसे विश्वसनीय आईएएस रहे नवनिर्वाचित एमएलसी एके शर्मा के हाथ में है। अब जब सबसे काबिल व्यक्ति के निर्देशन में चल रहे बनारस का यह हाल है तो ऐसे में देश के दूसरे पिछड़े हिस्सों का हाल क्या हो सकता है। खैर हमारे जिम्मेदार लोग चुनावों में व्यस्त हैं और कुछ लोग उनके प्रचारतंत्र के प्रभाव में सावन के अंधे की तरह हर तरफ हरा-हरा देख रहे हैं।