प्रेरक प्रसंग : यह शिक्षा किस काम की

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गुरु के अहमियत क्या होती है खलीफा हारुन-अल-रशीद के इस प्रेरक प्रसंग से बखूबी समझी जा सकती है।

एक बार खलीफा हारून-अल- रशीद बगदाद शहर का मुआयना करने निकले। रास्ते में उन्हें एक आलीशान इमारत दिखायी दी, जिस पर ‘मदरसा अब्बासिया’ की तख्ती लगी हुई थी। बादशाह ने मन्त्री से पूछा, “हमारे शाहजादे अमीन और मामून इसी मदरसे में तालीम पाते हैं न?” मन्त्री ने ‘हाँ’ जवाब दिया।

खलीफा घोड़े से उतरा और उसने मदरसे में प्रवेश किया। तब उसे सफेद दाढ़ीवाला एक बुजुर्ग हाथ-मुँह धोता दिखायी दिया। वह उस मदरसे का उस्ताद था। हाथ-मुँह धोने के बाद उसने बादशाह को सलाम किया। सलामी का जवाब देकर खलीफा बोला, “हम आपके मदरसे का मुआयना करने आये थे, लेकिन हमें यह देखकर बड़ा अफसोस हुआ कि यहाँ पूरी तालीम नहीं दी जाती।” “गुस्ताखी माफ हो,” उस्ताद डरते-डरते बोला, “हुजूर, मुझसे क्या गलती हो गयी?”

खलीफा ने कहा, “आप जब हाथ-मुँह धो रहे थे, तब हमारे शाहजादे चुपचाप खड़े थे। दरअसल उत्साद की जगह बहुत ऊँची होती है और उसकी खिदमत करना हर शागिर्द का फर्ज है, मगर हमने पाया कि हमारे शाहजादे चुपचाप खड़े थे। उनको चाहिये था कि वे आपको पानी लाकर देते और आपके पैरों पर पानी डालते। मालूम होता है, आपने उन्हें यह तालीम नहीं दी?”

यह सुन उस्ताद हक्का-बक्का रह गया और शाहजादे अमीन और मामून तो शर्म के मारे गड़ गये।