
मनुष्य की बुद्धि कल्प वृक्ष के समान है। उससे चाहे तो वह पानी, रोटी और पलंग भी ले सकता है और चाहे तो उसे प्रेत और मौत भी मिल सकती है। इसीलिए कहा जाता है कि सोच में जादू होता है। सकारात्मक सोच से ही दुनिया का निर्माण हुआ है।
एक आदमी कहीं जा रहा था। जंगल आ गया। भंयकर गर्मी थी। थक गया। एक वृक्ष की छाया में जाकर बैठ गया। प्यासा था। उसने मन ही मन सोचा, क्या ही अच्छा हो कि एक गिलास ठंडा पानी मिल जाए। देखते ही देखते एक गिलास ठंडापानी आ गया। उसने आसपास देखा। कहीं कोई नहीं था। वह आश्चर्यचकित रह गया।
पानी पीकर प्यास बुझाई। थोड़ी देर बैठा रहा। भूख. लगी। उसने सोचा, क्या ही अच्छा हो कि एक थाली भोजन आ जाए। उसके सोचते ही भोजन की थाली उसके पास आ गई। विस्मित होकर उसने भोजन कर लिया। ठंडी हवा चल रही थी। नींद आने लगी। सोचा, पलंग हो तो अच्छा हो। अचानक सामने पलंग बिछ गया। वह उस पर सो गया। खूब सोया।
दिन ढलने पर उठा। सोचा, यह क्या तमाशा है! कहीं इस पेड़ पर कोई प्रेत तो नहीं है? उसके यह सोचते ही एक प्रेत आकर खड़ा हो गया। वह डरा कि कहीं प्रेत उसकी जान न ले ले। यह सोचते ही प्रेत ने उसकी जान ले ली! असल में जिसके नीचे वह आदमी बैठा था, वह कल्प वृक्ष था । कल्प वृक्ष वह सब कुछ देता है जो मनुष्य अपने मन में सोचता है।