एक दिन संयोग से एक तंग रास्ते पर काशी के राजा और कौशल नरेश के रथ आमने-सामने आ गए। अब सवाल यह उठा कि दोनों में से कौन किसे रास्ता दे।
दोनों राजाओं के साथ चल रहे मंत्रियों और सलाहकारों ने तय किया कि जो राजा उम्र में छोटा हो, वह बड़े को जाने दे। परन्तु संयोग से दोनों राजाओं की अवस्था समान थी। फिर रास्ता निकाला गया कि छोटे राज्य का स्वामी, बड़े राज्य के स्वामी को मार्ग दे। दैवयोग से दोनों के ही राज्यों का विस्तार एक समान तीन सौ योजन था। तब यह तय हुआ कि जो राजा ज्यादा गुणी हो, वह पहले अपना रथ ले जाए।
दोनों पक्ष के लोग अपने-अपने राजा के गुणों का बखान करने लगे। कौशल नरेश के सारथी ने कहा, मेरे राजा भले के साथ भला और शठ के साथ शठता का व्यवहार करते हैं। इसलिए वे महान हैं। काशी नरेश के सारथी ने कहा, मेरे राजा सभी तरह के लोगों के साथ सद्व्यवहार करके उनके हृदय को जीत लेते हैं। इसलिए वे महान हैं।
अपने लोगों को लड़ते देख दोनों राजा रथ से उतर गए। कौशल राज ने कहा, पहले काशी के राजा का ही रथ निकलेगा, क्योंकि सद्व्यवहार ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। और कौशल के राजा के पूर्ण बातें सुन काशी के राजा भाव विभोर हो उठे। उन्होंने उन्हें अपने रथ पर बैठा कर उनले महल तक पहुंचाया।
दोनों राजा अगर लड़ पड़ते तो हज़ारों लोगों की जान जाती, धन हानि होती और भी बहुत नुकसान होता। और अंत में किसी को हार का सामना करना पड़ता। पर समझदारी से दोनों को लाभ ही हुआ, एक अच्छा मित्र मिला और हर तरह के विवाद से मुक्ति। मित्र आज भी जीवन कुछ ऐसा ही है ईगो सामान्य परिस्थितियों को भी कठिनतम बना देता है, जबकि प्रेम और सरलता विकट परिस्थितियों को भी सरल बना कर जीवन आनंद से भर देती है।