
अंगद जब प्रभु रामचन्द्रजी के राजदूत बनकर लंकापुरी गए तब उनकी आयु कुल चौबीस वर्ष की थी। अंगद को देखकर रावण को हंसी आयी, बोला, “लगता है, राम की सेना में कोई दाढ़ी-मूंछवाला विद्वान् नहीं, जो उन्होंने एक छोकरे को यहां भेज दिया है।
अंगद का स्वाभिमान भड़क उठा। उन्होंने कहा कि भगवान् राम को यदि यह मालूम होता कि रावण-जैसा विद्वान् भी विद्वत्ता की परख किसी के वेश से करता है, तो निःसन्देह उन्होंने मेरे स्थान पर किसी दढ़ियल बकरे को ही भेजा होता!
और यह सुनकर रावण को विश्वास हो गया कि यह छोकरा ‘छोकरा’ नहीं है, उसे जान-बूझकर यहां भेजा गया है।