
एक समय की बात है। एक जिज्ञासु ने अपने गुरु सन्त से पूछा आप इतने महान ज्ञानी हैं, सब समझते हैं, महान त्याग किया है इसके साथ ही जब आपकी और परमात्मा की आत्मा समान है, तो ज्ञान और बल में इतना अन्तर क्यों है?
गुरु मुस्कुराए और कहा व्यक्ति कितना भी ज्ञानी हो जाए पर संसार के समस्त ज्ञान को अर्जित नहीं कर सकता। जिज्ञासु शिष्य के मन में अब भी संदेह देकह कर संत उसे गंगा किनारे ले आए। सामने गंगा नदी की विशाल धारा बह रही थी। सन्त ने एक लोटा पानी भरकर लाने को कहा। जिज्ञासु फौरन लेकर आ गया।
सन्त ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा देखो भाई! नदी और लोटे का पानी एक है पवित्रता की दृष्टि से समान है, किन्तु नौका नदी में ही चल सकती है लोटे में नहीं। हमारा और परमात्मा का मूल स्वरूप समान है पर परमात्मा नदी और हम लोटे हैं। हमारा ज्ञान बल सीमित है।