एक बार की बात है। एक गुरुदेव और उनके चार शिष्य एक आश्रम की ओर जा रहे थे। वह गांव के रास्ते से होकर गुजर रहे थे। आस पास घने जंगल भी थे। गुरुजी को काफी प्यास लगी और वह उस गांव के किनारे एक पेड़ की छांव में बैठ गए। उन्होंने अपने एक शिष्य से कहां “पुत्र जाओ, मुझे बहुत प्यास लगी है। मेरे लिए पानी लेकर आओ।”
वह उस जंगल की ओर निकल गया और पानी की तलाश में इधर-उधर घूमने लगा। कुछ देर बाद एक नदी दिखाई दी। उस नदी में कुछ आदमी और औरतें कपड़े धो रहे थे। उसने दूसरी तरफ देखा तो कुछ व्यक्ति उसमें नहा रहे थे, जिनकी वजह से पानी बहुत गंदा था। उसने पानी नहीं लिया और वापस चला आया।
गुरुजी के पूछने पर उसने उत्तर दिया कि गुरु जी ऐसी बात है इसकी वजह से मैं पानी नहीं लाया। गुरुजी ने दूसरे शिष्य को भेजा। दूसरा शिष्य पानी लाने गया और इस बार दूसरा स्वच्छ पानी लेकर लोट आया। गुरुजी के पूछने पर उसने उत्तर दिया:
“गुरुजी मैं उन व्यक्तियों का जाने का इंतजार किया। उसके बाद जब वह चले गए और पानी में मिट्टी नीचे बैठ गयी तब पानी साफ हो गया और मैं पानी लेकर आ गया।”
गुरु जी ने पहले शिष्य को समझाया यदि तुम धैर्य रखते और उन व्यक्तियों का जाने तक इंतजार करते हैं तो तुम पानी ला सकते थे। तुम्हारे अंदर धैर्य की कमी है। उन्होंने सभी शिष्यों को समझाते हुए कहा जीवन में धैर्य बहुत जरूरी इंसान बहुत ही जल्द उतावला हो जाता है। परंतु उसे धैर्य की जरूरत है मेरे बिना सफलता नहीं प्राप्त होती। क्योंकि हमारा जीवन उस नदी के पानी के जैसा है, जो कुछ देर रुकने पर मिट्टी नीचे बैठ जाती है और हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ जाते हैं।
मनुष्य के जीवन में कई बार दुख और परेशानियां आती हैं, जो मिट्टी के समान होती है। हमें उनका बैठने का इंतजार करना चाहिए और कुछ देर बाद समस्या मुक्त जीवन में प्राप्त होता है, जो हमारे लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है।