तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की सीमा के एक भारतीय गांव पर कुछ पाकिस्तानी दंगाइयों ने रात के समय प्रवेश कर कुछ भारतीय युवतियों के अपहरण का प्रयास किया।
बोरोदोकुनी गांव में स्थित चर्च के पादरी को जब युवतियों की चीख-पुकार सुनाई दी, तो वह उन्हें बचाने के लिए निर्भीकतापूर्वक सामने आए। एक 13 वर्ष की लड़की को उन्होंने एक दंगाई से छुड़ाने का प्रयास किया। दंगाई ने क्रोधित होकर पादरी को छुरा भोंक दिया। घायल होने के बावजूद पादरी ने लड़की को नहीं ले जाने दिया। तब तक चर्च के अन्य सेवक वहां पहुंच गए।
पादरी ने उनसे कहा, ‘मैं तो शायद बच नहीं पाऊंगा, किंतु इस अबोध लड़की की रक्षा करना आप सबका फर्ज है। यदि मैं इसका अपहरण होता देखकर भी मूकदर्शक बना रहता, तो शायद गॉड मुझे कदापि क्षमा नहीं करते।’
कुछ ही देर बाद पादरी ने प्राण त्याग दिए। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने 4 मार्च 1994 को लोकसभा में इस घटना का वर्णन किया था, तब अनेक सांसदों की आंखों में आंसू आ गए थे। अटल जी ने कहा था असल धर्म उस पादरी ने निभाया, जो यह जानते थे कि बच्ची को भीड़ से अकेले नहीं बचा सकते, पर अपनी आखिरी सांस तक वे उसे बचाने का प्रयास करते रहे और आखिर में बच्ची बच भी गयी।