गुरु द्रोणाचार्य ने शिक्षा पूरी होने पर कौरव और पांडव वंश के बड़े राजकुमारों दुर्योधन और युधिष्ठिर को परीक्षा के लिए बुलाया, क्योंकि अंततः इनको ही शासन संभालना था। गुरु द्रोण ने सबसे पहले युधिष्ठिर को एक बुरा व्यक्ति और दुर्योधन को एक अच्छा व्यक्ति ढूंढकर लाने को कहा। गुरु की आज्ञा पा दोनों राजकुमार चले गए।
सारा दिन भटकने के बाद शाम को दोनों ही खाली हाथ गुरु के पास लौटकर आ गए। दुर्योधन ने गुरु से कहा- ‘मैं तो सुबह से परेशान हो गया। मुझे एक भी भला ने आदमी नहीं मिला, जिसे मैं आपके पास लाता।
दूसरी ओर युधिष्ठिर ने कहा गुरुदेव, मैं सभी बुरे कहे जाने वाले व्यक्तियों के पास गया। उनसे मिलकर मैंने पाया कि उनमें तो अनेक गुण हैं। मुझे कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला, जो संपूर्ण रूप से बुरा हो। मैं क्षमा चाहता हूं कि मैं आपके काम को न कर सका।
गुरु द्रोण ने दोनों को पास बुलाकर कहा- प्रत्येक मनुष्य अच्छाई और बुराई का संगम है। न कोई संपूर्ण रूप से बुरा है और न कोई संपूर्ण रूप से अच्छा। सवाल हमारे दृष्टिकोण का है कि हम उसमें क्या देखते हैं। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। हमें अपने दृष्टिकोण को उदार बनाना है।