आज हम आपके सामने रख रहे हैं महान डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन का एक प्रसंग। यह प्रसंग बताता है कि कितने संघर्ष के बाद वे यहां तक पहुंचे। उन्होंने ने अपने जीवन में बहुत से कष्ट सहे, लेकिन कभी भी अपनी शिक्षा को प्रभावित नहीं होने दिया। वे हर दिन 14 से 18 घंटे तक अध्ययन किया करते थे। शिक्षा के प्रति उनकी ललक और जी तोड़ मेहनत का ही परिणाम था कि बड़ौदा के शाहू महाराज ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया था। बाबासाहेब महाराज से सिर्फ जरूरत भर का पैसा लिया करते थे।
बाबासाहेब को किताबें पढने का बड़ा शौक था। माना जाता है कि उनकी पर्सनल लाइब्रेरी दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत लाइब्रेरी थी, जिसमे 50 हज़ार से अधिक पुस्तकें थीं।
लन्दन प्रवास के दौरान वे रोज एक लाइब्रेरी में जाया करते थे और घंटों पढाई किया करते थे। एक बार वे लंच टाइम में अकेले लाइब्रेरी में बैठ-बैठे ब्रेड का एक टुकड़ा खा रहे थे कि तभी लाइब्रेरियन ने उन्हें देख लिया और उन्हें डांटने लगा कि कैफेटेरिया में जाने की बजाय वे यहां छिप कर खाना खा रहे हैं। लाइब्रेरियन ने उन पर फाइन लगाने और उनकी मेम्बरशिप ख़त्म करने की धमकी दी।
तब बाबासाहेब ने क्षमा मांगी और अपने और अपने समाज के संघर्ष और इंग्लैंड आने के की वजह के बारे में बताया। उन्होंने यह भी बड़ी ईमानदारी से कबूल किया कि कैफेटेरिया में जाकर लंच करने के लिए उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं हैं। उनकी बात सुनकर लाइब्रेरियन बोला आज से तुम लंच आर्स में यहां नहीं बैठोगे तुम मेरे साथ कैफेटेरिया चोलोगे और मैं तुमसे अपना खाना शेयर करूंगा।
वह लाइब्रेरियन एक यहूदी (Jew) था और उसके इस व्यवहार के कारण बाबासाहेब के मन में यहूदियों के लिए एक विशेष स्थान बन गया।