एक धनपति किसी फकीर के पास गया और कहने लगा कि मैं प्रार्थना करना चाहता हूं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद प्रार्थना नहीं होती। वासना बनी ही रहती है। चाहे जितना आंख बंद कर लूं, लेकिन परमात्मा का दर्शन नहीं होता। क्या करूं? क्या कारण है इस उपद्रव का?
फकीर उस धनपति को उस खिड़की के पास ले गया जिसमें स्वच्छ कांच लगे हुए थे। इसके पार वृक्ष, पक्षी, बादल और सूरज सबका दर्शन सम्भव था। फकीर उसे फिर दूसरी खिड़की पर ले गया जिसमें चांदी की चमकीली परत लगी थी। यहां लाकर फकीर ने धनपति से पूछा- चांदी की चमकीली परत और कांच में कुछ अंतर पाते हो?
धनपति ने बतायाः चमकीली परत पर सिवाय खुद की शक्ल के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। बाहर की दुनिया तो सिरे से गायब है। फकीर ने समझाया जिस चमकीली परत के कारण तुमको सिर्फ अपनी शक्ल दिखाई दे रही है वह तुम्हारे मन के चारों तरफ भी है। इसलिए तुम ध्यान में जिधर भी देखते हो केवल खुद को देखते हो।
जब तक तुम्हारे ऊपर वासना की परत है तब तक परमात्मा और ब्रह्म तुम्हारे लिए बेमानी है। तुम इस वासना रूपी चांदी की परत के सामने से हटो। शीशे जैसे पारदर्शी और स्वच्छ मन से उसका ध्यान करो। वह तुम्हें तुरंत दिखेगा।